_बलात्कार
घर में घुसते ही बिना किसी से कुछ कहे रिया दौड़ती सीधे अपने कमरे की तरफ भागी और बाल झाड़ने वाली दो कंघियों से कभी अपनी पीठ तो कभी अपने पूरे शरीर को पागलों की तरह झाड़ने लगी । आइने में घूम_घूम कर देख बदन को झाड़ भी रही थी व बेतहाशा रोये भी जा रही थी । जब रोने की उसकी आवाज चीखों में बदल गयी तो घबराये उसके माता पिता कमरे में आये तो वहाँ का नजारा देख चौंक गये क्योंकि रिया ने बेतहाशा कंघियों से बदन को छिल लिया था । आवाज देने पर भी रिया मानो यूँ अपने काम में मग्न थी जैसे वो कुछ सुन ही न रही हो । रिया कि माँ घबराती रिया को दोनों हाथों से पकड़ जब झकझोड़ा तो रिया की तंन्द्रा मानो टूटी और माता पिता को देख मां के सीने से लग चीखती जोर_जोर से रोने लगी तो माँ ने उसे भींच लिया ! तब तक रोने दिया जब तक वो शांत न हो गयी ।
रिया के शांत होते ही पिता ने कंघी उसके हाथों से ले प्यार से पूछा "बेटा क्या हुआ बोल न किसी ने कुछ कहा" , "तेरे पापा है न" । तु बिना डरे बता क्या बात है । कांपते होंठो से रिया ने जैसै बोलना शुरु किया मानों कमरे में कुछ सांय सांय चलने लगा ।
माँ पापा मेरा भी बलात्कार होगा । है न? मैं भी तो लड़की हूं । उसकी इस बात पर सन्न रह गये दोनों पर रिया को बोलने दिया ।
पापा अभी स्कूल में हम सब ने दो मिनट का मौन रखा था उस आठ साल की लड़की के लिए जिसका बलात्कार तीन चार लोगों ने तीन दिनों तक कर उसे मार कर फेंक दिया । पापा सब कहते है गलती लड़की की ही होती है उसका यौवन और छोटे कपड़े ही लड़कों को उकसाते है पर पापा उस लड़की ने तो छोटे कपड़े भी न पहने थे और वो तो बच्ची थी फिर उसका बलात्कार............।
कहती रिया फिर सिसकने लगी व फिर बोली पापा मैं भी तो चौदह साल की हो गयी हूं मैं भी स्कूल जाती हूं और मैं तो स्कर्ट पहनती हूं पापा मेरा भी बलात्कार हो जाएगा । पापा मुझे भी मार देंगे वो लोग ।
मुझे बचा लो पापा ।
देखो न मां मेरे पीठ पूरे बदन पर गन्दी निगाहें सटी है मां प्लीज उसे झाड़ दो न मां कह कर इस बार पिता के सीने से लग चीख_चीख रोने लगी रिया ।
मासूम बेटी के मुंह से इतनी कड़वी सच्चाई सुन सन्न थे दोनों पर ढ़ांढ़स देने के शब्द न थे । पर मन में एक विचार अवश्य दृढ़ कर लिया था रिया के मां पिता ने कि अपनी बेटी को बलात्कार शब्द से डरना नहीं लड़ना सिखायेंगे उसे इतना मजबूत बनायेंगे कि उसकी पीठ और देह पर गड़ी निगाहों का मुंहतोड़ जबाब देगी जिसके लिए उसे शारिरीक ही नहीं मानसिक तौर पर भी सबल बनाना होगा । ये समझाकर कि गन्दगी आंखों में नहीं सोच में होती है
जिसके लिए लड़कियां दोषी नहीं होती वो गीदड़ दोषी होते है जो लड़कियों को भोग की वस्तु के अलावा और कुछ नहीं समझते चाहे वो दो महिने की बच्ची हो या आठ साल की बच्ची या फिर निर्भया या प्रियंका रेड्डी !
रुबी प्रसाद
सिलीगुड़ी(पश्चिम बंगाल
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