***गाँव के मिट्टी में ही***

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गाँव छोडकर वो प्यारा ,

आ गये हम नये शहर में  ।

कुछ करने की चाहत लिए,

और रोटी का चाँद था दिल में ।

 

सब कुछ नया नया सा था,

हर इन्सान वो अनजाना था  ।

ना कोई ठाव ठिकाना ,

अंबर के नीचे बसेरा था  ।

 

रास्ता रास्ता भीड से भरा ,

हर कोई यहाँ भाग रहा था  ।

बेचैन सी जिंदगी कैसी  ?

वो इन्सान यहाँ जी रहा था  ।

 

कई उलझनें मन में लेकर ,

 मायूसी चेहरेपर छाई हुई थी ।

हँसी खोकर वो जिंदगियाँ सारी,

अपनापन कबका भूल गई थी ।

 

पल पल याद लगा वो गाँव,

मिट्टी की खुशबू भी बुला रही थी ।

मेरे गाँव की मिट्टी में ही ,

खुशियों में झुमती ये जिंदगी थी ।

 

प्रा.गायकवाड विलास.

मिलिंद क.महा.लातूर.

8605026835.

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