***गाँव के मिट्टी में ही*** *** ** **** * ** गाँव छोडकर वो प्यारा , आ गये हम नये शहर में । कुछ करने की चाहत लिए, और रोटी का चाँद था दिल में । सब कुछ नया नया सा था, हर इन्सान वो अनजाना था । ना कोई ठाव ठिकाना , अंबर के नीचे बसेरा था । रास्ता रास्ता भीड से भरा , हर कोई यहाँ भाग रहा था । बेचैन सी जिंदगी कैसी ? वो इन्सान यहाँ जी रहा था । कई उलझनें मन में लेकर , मायूसी चेहरेपर छाई हुई थी । हँसी खोकर वो जिंदगियाँ सारी, अपनापन कबका भूल गई थी । पल पल याद लगा वो गाँव, मिट्टी की खुशबू भी बुला रही थी । मेरे गाँव की मिट्टी में ही , खुशियों में झुमती ये जिंदगी थी । प्रा.गायकवाड विलास. मिलिंद क.महा.लातूर. 8605026835. ******
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