हड़ताल 

 

 

हड़ताल 

 

मौसम खराब है राजमिस्त्री ने कहा आज काम नहीं होगा। महिंदर आज घर बैठे हैं। प्लास्टिक की बोरी से माथा ढंके दोनों बाप बेटे किताब दुकान पर पहुंचे । 

" तीन रूपया वाला तीन ठो कापी दिजिए , एक ठो कठपेंसिल , मेटौना और एक ठो पेंसिल छिलनेवाला। "

 

दुकानदार से सब सामान निकाल कर रख दिया " चौबीस रूपया हुआ।" 

"चौबीस रूपया ! दू दू वाला सब दिजिए न।"

दुकानदार  सामान वापस रखकर नया सामान निकालने का उपक्रम शुरू ही किया था कि नये ग्राहक को देखकर मुस्कुराना पड़ा " क्या मास्टर साहब इ हड़ताल कबले टूटी ?"

आगंतुक ने पसीना पोंछा " देखिए कबतक सरकार मानती है। "  फिर महिंदर की तरफ देखते हुए बोला "लोग आधा पेट खा के भी बच्चा को पढ़ा रहा है और सरकार चाहती है मास्टर लोग पेट पर गमछा बाँध के पढ़ाये।"

 

फिर खुद ही बच्चे को लाड़ दिखाते हुए पूछा "कौन स्कूल में पढ़ते हो बाबू।"

बच्चे ने फलाना ढ़िमकाना टाइप के पब्लिक स्कूल का नाम बताया।

उन्होंने महिंदर को झिड़का " वहाँ तो चूस लेगा । काहे नहीं सरकारी स्कूल में नाम लिखवा दिये। अरे बच्चा पढ़ता है कि स्कूल। तुम्हारे तरफ भी बुद्धि का हड़ताल चल रहा है क्या?"

 

महिंदर अपने आप को अपमानित महसूस करने लगे लेकिन गाँव देहात की मर्यादा का ख्याल कर मास्टर साहब को कुछ जबाव नहीं दिये। चुपचाप सामान लेकर चल दिये। 

जबाव दुकानदार ने दिया " ये सोचने लायक होता तो मजदूरी करता। आपलोग सोचिये न कि लोग आधा पेट खाके जी ले रहा है लेकिन बच्चा को सरकारी स्कूल में पढ़ाने को तैयार नहीं है।"

 

कुमार गौरव

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