कभी कभी ज़िंदगी में कभी कभी ज़िंदगी में ग़म है ग़म की दवा बनाने के लिए बेसाख्ता दिल से निभाने तो कभी खुद को हंसाने के लिए ज़िंदगी का हर पड़ाव देखा है दुःख सुख साथ साथ देखा है ज़िंदगी लगाती है खरोंचें करती है कोशिशे तराशने के लिए कभी कभी जरूरतें करती है बात ज्यादा ऊँची आवाज़ में सहम गयी है खुवाहिशें जो थीबे-सब्र पूरी हो जाने के लिए पिछले जन्मों का फल है किसी को फूल किसी को कांटे मिले लो हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद उसको पाने के लिए टूटा मेरा ये मन है रोगी तन है रिश्तों में दीखता बेगानापन है क्या कोई अब तरकीब निकाले अब रिश्तों को निभाने के लिए ज़मीँ सजाई गई ज़िंदगी की तड़प बढ़ाई गई सूरत सजाई गई आदमी इंसान बना कहाँ न रही जरुरत आइना दिखाने के लिए लिखा है मैंने खत एक इंसानियत के नाम कहाँ भेजूं मैं पैगाम पता मालूम नहीं तो डाकिया भी करे आनाकानी पहुँचाने के लिए झूठ लिखूं तो लफ़ज़ खफा होते है उलाहना भी गरज़ कर देते है काटे का ज़हर कैसा है मर जाऊँ मैं किसको कहूं काटने के लिए कोई अपना साथ न आए वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जिधर जाएँ लाश लावारिस जो मिले ले जाएँ उसे मरघट कि दबाने के लिए डॉ गुरिंदर गिल |
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