दोस्तों..

जो कड़वे के शौकीन उन्ही से अपने मिज़ाज मिलते हैं.. क्योंकि सच लिखना मेरी क़लम की आद़त है..और कम्ब़ख्त आजकल तो ये लत बन गई है.. आद़त छुट जाती लत कभी नहीं छुटती.. क्योंकि मैं...

 

 

 

क़लम की जुबां खोल देता हूॅ.

 

सच को काग़ज़ पर उतारने का खतरा मोल लेता हूॅ..!

कुछ इस तरह अपनी क़लम की जुबां खोल देता हूॅ..!

 

लफ़्ज़ों से अंदाजा लगाता हूॅ हर मानवीय किरदार का..!

कौन कितना वजनदार उनके लफ़्ज़ों से तोल लेता हूॅ..!

 

कहते हैं विचार ही आपको कीमती और  बेमोल करते हैं..!

विचारों से ही मैं किसे अमूल्य तो किसे बेमोल लेता हूॅ..!

 

हर एक से कब कहां मिलते हैं हमारे मिज़ाज ये दोस्त..!

जो अपने मिज़ाज का हो उससे ही अक्सर बोल लेता हू्ॅ..!

 

 

कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश