रिश्ते
रिश्ते एक छोटा सा ढाई अक्षर का शब्द ,पर जीवन की बुनियाद इसी पर रखी हैं ।रिश्ता शब्द अपनेआपमें पूरी दुनिया समेटे हुए है | सच पूछो तो रिश्तों की शरुआत माँ और शिशु से होती है | माँ और बच्चे का रिश्ता इस संसार में सबसे भावनात्मक रिश्ता है| माँ के पेट से जन्म लेकर जब बच्चा इस दुनिया में अपनी आँख खोलता है, तब उसकी गोद में कई मूल्यवान और पवित्र रिश्ते खुद-ब-खुद आ गिरते हैं, जैसे पिता, भाई, बहन आदि … इसके साथ न जाने कितने और रिश्ते जुड़ जाते है जैसे दादा-दादी, नाना-नानी, ताऊ-ताई, मामा-मामी इत्यादि ..
जैसे-जैसे वह अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता है , कई और रिश्ते उसकी जीवन बगिया में खिलते नजर आते हैं | ये रिश्ते उसने बनाये नहीं हैं पर सामाजिक रीति-रिवाज के कारण बन गये हैं…पति/पत्नी, बेटा/बेटी , सास/ससुर वगैरा | कुछ रिश्ते उसके साथ ऐसे जुड़े जो एकबार तो उसके साथ चलते दिखाई दिए पर बेनाम बन कहीं खो गये…दोस्त , प्रेमी/प्रियतमा जैसे..
दोस्तों, दुनिया रिश्तों पर चल रही है. खून के रिश्ते, दोस्ती के रिश्ते, सामाजिक रिश्ते और मानवता का नाता. इन 4 कैटेगरी में सारे रिश्ते आ जाते हैं और इन्हीं के इर्दगिर्द हम जीवन गुजार लेते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘‘अगर रिश्तेनाते निभाना आप की कमजोरी है तो आप इस दुनिया के सब से मजबूत इंसान हैं.’’ उन की बात सच है क्योंकि हर रिश्ता बनाने के बाद उसे निभाना पड़ता है वरना वह रिश्ता खत्म हो जाता है. भले ही खून के रिश्ते हमें जन्म से मिल जाते हों लेकिन उन्हें बनाए रखने के लिए निभाना पड़ता है. मतलब उस पर मेहनत करनी पड़ती है. मेहनत करने से आशय यह नहीं है कि किसी तरह की खुशामद करनी पड़ती हो बल्कि रिश्तों को निभाने के लिए समय और समझदारी की जरूरत होती है.कहा गया हैं की रिश्ता बनाना आसान होता हैं पर निभाना कठिन ।
आजकल रिश्तों की आड़ मे कई दुष्कर्म भी देखने को मिल रहे हैं । भाई बहिन का कई लोग रिश्ता बना लेते हैं, कुछ दिनों बाद पता लगता हैं की दोनों भाग गए हैं । शर्म आती हैं ,इस प्रकार के रिश्तों पर ।
रिश्ते हमें जीवन में ईश्वर की ओर से दिया गया उपहार होते हैं। वे जन्म से ही हमारे पूर्वकृत कर्मों के अनुसार हमारे साथ जुड़े हुए होते हैं। उनके साथ जितना लेनदेन का सम्बन्ध होता है, उसी के अनुरूप उन रिश्तों का हमसे जुडाव होता है। ये सभी हमारे सुखों और दुखों में हमारे साथी बनते हैं। जितना जिसके साथ सम्बन्ध निश्चित होता है, उसे भोगकर वह रिश्ता हमसे विदा लेकर सदा के लिए बिछुड़ जाता है।
जिंदगी मे एक रिश्ता ऐसा भी जरूर जुड़ता हैं जो पारिवारिक रिश्तों से बढ़कर होता हैं, जो न जाने ऐसे बन्धनों से बंधा होता हैं, जिस बन्धन से छूटने का मन नही होता । जो हर पल, हर वक्त, हर समय हमारे आस पास, ख्यालो मै ही घूमते रहता हैं। वो होता हैं दिल का रिश्ता जो हमे ईश्वर नही देता, जो इसी धरती पर मिलता हैं, पर वो रिश्ता ईश्वर के आशीर्वाद से भी कम नही होता ।
मेरा निवेदन और आग्रह हैं की किसी भी रिश्तों की अहमियत समझिये, ये एक ऐसा पौधा हैं जो आज नही तो कल जरूर फल देगा,बस इतना ध्यान रखे की आपने बीज क्या लगाया ,फूलो का या कांटो का।
हम कल चर्चा करेंगे की क्या हम सच मे रिश्ते निभा रहे हैं या स्वार्थवश रिश्तों को पाल रहे हैं ?
क्या गलतफहमी से रिश्ते टूट जाते हैं?
क्या रिश्ते सच मे प्रकृति की देन या आशीर्वाद होते हैं या हम अपनी आवश्यकता अनुसार बना या बिगाड़ लेते हैं ?
कितने जरूरी हैं जीवन मे सच्चा रिश्ता ?
सबसे कीमती रिश्ता कौनसा होता हैं ?
आपकी राय और प्रतिक्रिया का सादर आमंत्रण और स्वागत हैं ।
हंस जैन,रामनगर खण्डवा मध्यप्रदेश
98272 14427
No comments:
Post a Comment