कहानी - काली रात भागुली आज सुबह बहुत ही जल्दी उठ गई थी। मन उसका बहुत ही प्रफुल्लित था। जी तोड़ मेहनत के बाद भी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट तैरती थी। नीचे गगास का पानी चांदी की तरह चमक रहा था। पहाड़ी के बीच में घर था उसका। ऊपर हज़ारों फ़ीट ऊँचा और नीचे हज़ारों फ़ीट गहरी घाटी। घर के आस-पास फलों व फूलों के ढेर सारे पेड़ -पौंधे महक रहे थे। एक तरफ बाँझ के पेड़ व दूसरी तरफ चीड़ के पेड़। तेज हवा के साथ सें- सें की आवाज आ रही थी साथ में उसमें ठंडक थी। घर में भागुली की सासु खिमुली व ससुर मोहन प्रसाद थे। दो छोटे बच्चे जो स्कूल जाते थे। उसका पति गोपाल प्रदेश में नौकरी करता था। कल रात को उससे बात हुई थी । वो कल पहुँचने वाला था। फ़ोन पर उसने पूछा था 'घर के लिए और तुम्हारे कुछ लाना हो तो बताओ ' वह कोई जवाब नहीं दे पाई थी। उससे इसी बात की ख़ुशी थी कि पूरे एक साल बात उसका आदमी घर आ रहा है। उसने जल्दी -जल्दी गोठ से गोबर निकाला। दूध दुहा। जानवरों को चारा-पानी दिया। पास के धारे से दो-तीन घड़े पानी भी भर कर ला चुकी थी। सास ससुर उठें उससे पहले उसने चाय के केतली चूल्हे पर चढ़ा दी थी। उनके उठते ही चाय का गिलास उनको थमा दिया। उसको ढेर सारा काम याद आ रहा था। घास ,लकड़ी ,कपडे और बहुत कुछ। इधर आसमान में गहरे काले बादल छाए हुवे थे लग रहा था जोरदार बारिश होगी। इधर कौवा नीम की डाल पर जोर-जोर से कांव -कांव कह रहा था। वह बोली 'मुझे भी मालूम है तू क्यों बोल रहा है ,मेरे वो आने वाले हैँ। इधर सास -ससुर व बच्चे भी बेहद खुश थे। बहुत समय बाद मिलना व मुख देखना होगा। इसी बीच जोरदार बारिश शुरू हो गई । फिर भी उसके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। वो भीग कर भी सारे काम निपटा रही थी । इसी समय खेतो की निराई -गुड़ाई का काम भी होता है। सास-ससुर भी उसे काम में सहयोग देते थे। देखते -देखते दिन छुप गया । उसने रात का खाना भी जल्दी बना कर सबको समय पर खिला दिया। सब बर्तन वगैरह साफ़ करने के बाद उसने अपने आदमी से बात की। उसे मालूम पड़ा कि वह रात की ट्रैन से बैठेगा और सुबह हल्द्वानी पहुँचेगा। दोपहर तक वह घर पहुँच जाएगा। सब लोग सो चुके थे उससे नींद नहीं आ रही थी . इधर बारिश कई घंटो से चल रही थी और थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। तड़ - तड़ की आवाज आ रही थी। बीच में बादलों के गरजने व बिजली के कड़कने की आवाजें भी आ रही थीं। उसका मन काँप रहा था। ना जाने ये रात कब बीतेगी। करवटें बदलते हुवे उसकी भी आँख लग गई । थोड़ी देर बाद बहुत तेज आवाज हुई। इसके पहले की घर के लोग कुछ समझते , आवाज उनके घर बिलकुल करीब आ गई और कुछ ही क्षणों में पूरे घर को एक झटके में अपने साथ लेकर गहरी घाटी में समा गई । सुबह लोगों को पता चला उनके घर के ऊपर स्थित एक पहाड़ का हिस्सा का टूट गया जो बड़े पत्थरों के साथ उस पूरे घर और उसमें रहने वालों को भी अपने साथ ले गया। इधर गोपाल बड़ी ख़ुशी के साथ घर पहुंचा। देखा उसके घर के पास भीड़ है। यह देखते ही उसके होश उड़ गए और मन आशंका से भर गया । भारी क़दमों से वहां तक पहुँचा और वहां पहुँच कर उसे सब कुछ समझ आ गया। वह वहीँ पर धम्म से बैठ गया। सोचने लगा इस काली रात ने एक पल में मेरे सारे संसार को उजाड़ दिया। श्याम मठपाल ,उदयपुर. |
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