**ताज़ी बिवाई**

**ताज़ी बिवाई**

 

"सुनैना की माँ! ज़िंदगी में पहली बार आदमी पहचानने में चूक हुई है।" मुट्ठी भींचते हुए जब ठाकुर बलदेव ने पत्नी से ये कहा, तो पत्नी सारा दोष किस्मत पर मढ़ते हुए उनके अफ़सोस को हल्का करने की नीयत से बोली-

"सब क़िस्मत की बात है जी!"

"क़िस्मत की बात नहीं है, मेरी चूक है। अव्वल दर्जे का जाहिल गंवार निकला वो, अगर पता होता ऐसा बज्रमूर्ख होगा, तो कतई अपनी बच्ची ऐसे लड़के से ना ब्याहता।" उनका पछतावा और गुस्सा अब चरम पर था।

"आप शांत हो जाईये। ऐसे मसले ठंडे दिमाग़ से सुलझाए जाते हैं। आप एक बार कुंअर साहब से बात तो कीजिये। हमने जब मान पान में कोई कसर नहीं रखी तो फिर बिटिया को परेशान करने या मारपीट करने का क्या औचित्य...! उनसे पूछें तो सही,आखिर क्या चाहते हैं?" पत्नि ठन्डे पानी का गिलास उन्हें थमाकर बोली।

"क्या चाहता है...? पुलिस की मेहमानी चाहता है और कुछ नहीं, समझीं...! उसे तो मैं छटी का दूध याद दिला दूँगा...,बेटी ब्याही है मैंने ...बेची नहीं है,जो जानवर की तरह उसे मारा-पीटा। मेरी बच्ची पर हाथ उठाने की उसकी हिम्मत कैसे हो गयी।

"हिम्मत...! इसमें हिम्मत की क्या बात है? पति है उसका ...और ये बात आज आपको इतनी अचंभित क्यों कर रही है?" एकटक निहारती पत्नी की ये बात सुनकर  जाने क्यों अचानक   ठाकुर बलदेव सिंह चुप्पी साध गए।

 

राहिला आसिफ़ खान

शिवपुरी(म.प्र.)

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