हमारी मातृ भाषा हिंदी के विविध रूप 

 

हिंदी मैं हिंद देश की 

संतान मैं भारत देश की 

बोलियों ने पाला-पोसा 

सुगंध मैं अपने देश की 

 

कई मेरे नाम रहे हैं 

कई मेरे ग्राम रहे हैं 

कण-कण से जुडी मैं 

सुन्दर मेरे धाम रहे हैं 

 

संस्कृत मेरी है जननी 

बृज -मैथली है भगनी 

प्राकृत से जाना मुझे 

कहते मुझे खड़ी बोली 

 

माटी के कंठों से उपजी 

गीतों-छंदों में हूँ बसी 

भजनो ने भक्ति जगाई 

परिहास में खूब हँसी

 

पर्वत शिखरों पर मैं हूँ 

सागर की लहरों पर मैं हूँ 

इस हवा में घुल-मिल गई 

दिन के हर पहर में मैं हूँ 

 

रामायण से घर घर पहुँची

दोहों से मिल गई ख़ुशी 

भक्ति काल की सरिता मैं 

अपनी संस्कृति  में बसी  

 

पूरे देश को मैंने जोड़ा 

सबसे लिया थोड़ा-थोड़ा

देश भक्ति ज्योति मुझमें 

मातृ प्रेम में कैसा रोड़ा 

 

सुशासन की अलख जगाई 

जयहिंद की महिमा गाई

वंदे मातरम की गूंज हूँ 

मेरे देश ने ली अंगड़ाई 

 

आज विश्व में है पहचान 

कोई नहीं हैं अंजान  

फ़िल्मी सितारा आज हूँ 

धड़कते दिलों की मैं जान 

 

पराधीनता जिनको भाई 

वही कहते मुझे पराई 

स्वाधीनता का अर्थ क्या है 

मैं ही समझूँ मिट्टी जाई

 

श्याम मठपाल ,उदयपुर