*मन की शक्ति अपनी हम कैसे बढायें*






 लघु  कथा 

 

*मन की शक्ति अपनी हम कैसे बढायें*

 

*लघु  कथा नूतन पृथ्वि की एक सुनायें*

 

*“मानसिक-शक्ति का वर्धन- परिमार्जन*

*अदम्य "सहन शक्ति" का करें  परिक्षण!*

*व्यर्थ प्रतिक्रियाओं का करो पू्र्ण दमन!!*

*आत्म-विश्वास का असीमित भण्डारण!*

*प्रारब्ध भोग-कष्टों का निर्भय हो करें वरण!!*

*ग्रीष्मकालीन प्रचंड दावाग्नि की,*

*दहकती ज्वाला को देखा है?*

*शुष्क वृक्ष-जीव का जल हेतु*

*निरुत्तर आवेदन देखा है??*

*वही संतप्त वृक्ष पूजन हेतु,*

*फल-फूल-पुष्प देता रहता है!*

*तरु की शीतल छाया तले,*

*पथिक थकित हो,*

*कुछ पल दम भरता है!!*

*कटे वृक्ष की किसी ने,*

*अश्रुधार  देखी है?*

*मानव को तृण सम,*

*सहिष्णु बनना पड़ता है!*

*तृण पावों तले पड़ जाये,*

*हटते कभी किसी ने देखा है??*

*गुलाब की झड़ी पँखुड़ियों को*

*पाव लते पिसते सबने देखा है।*

*नहीं कभी अवरोध का प्रतिरोध*

*वे करते- ऐसा नहीं देखा हैं?*

*तृण में प्राण-शक्ति नगण्य चेतना*

*आक्रमण सारे झेल वे सह जाते हैं।*

*यथेष्ट सहनशीलता संचित कर,*

*सत्य-पथ का सात्विक पथिक,*

*सक्षम निर्देशक बन जाते हैं!!* 

*‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ का,*

*शुभ्र परिवेष सृष्ट करते हैं!*

*सर्वथा हरि-चिंतन, सत्संग,*

*सामूहिक कीर्तन कर मानव मुक्त होता है!!*

*कोरोना ऐसे असंख्य शत्रुओं का*

*सात्विक भक्त हीं अंत करता है।।*

*यह लधुकथा का कह*

*सुधिजनों का आह्वान करते हैं।।।*

 

*डॉ. कवि कुमार निर्मल*

*बेतिया (बिहार)*


 

 



 



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