प्रेम-लगन

   
प्रेम-लगन

 

नीना महाजन 

 

                   आज फिर उसने हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी , मैं जब भी उसे देखती वह हल्के नीले रंग की साड़ी , सूट या चूड़ीदार में ही मुझे दिखती ।

                      बड़ी-बड़ी आंखें , सुतवा नाक , पंखुड़ी से होंठ और रंग ऐसा मानो किसी ने दूध में हल्का सी गुलाबी गुलाल घोल दिया हो , सुंदरता और नजाकत के ढांचे में ढली उस लड़की को मैं रोज देखती।  

                   प्रतिदिन सुबह वो एक ही समय पर जाती , जब उसके जाने का समय होता , ना चाहते हुए भी मैं उत्सुकता वश खिड़की के पास रखी कुर्सी पर अपनी चाय का कप लेकर बैठ जाती थी और जब तक वो आंखों से ओझल ना हो जाती उसे दूर तक निहारती रहती , ना जाने क्या कशिश थी उसमें..

             मैं उससे बात करना चाहती थी , उसे अपने पास भी बिठाना चाहती थी क्योंकि उसमें मुझे अपनी कोमल की झलक दिखती थी , कोमल मेरी बेटी..जो शादी के बाद अमेरिका जाकर अपने पति और बच्चों में ऐसी रम गई कि 7 वर्ष हो गए थे पर वो यहां हम से मिलने आने का समय ना निकाल पाई थी ।

                  उस नीली साड़ी वाली लड़की को मैं कोई नाम देना चाहती थी ताकि मैं उसके बारे में जब भी सोचूं एक पहचान सी हो ।

                 कोमल की एक बड़ी सुंदर प्यारी सी दोस्त थी नीलिमा ' हां ,   कुछ और नहीं , यही नाम ठीक है क्योंकि इसे नीला रंग ही पसंद है आज से मैं इसका नाम नीलिमा ही रख देती हूं .. अब इसके बारे में बात करने में , सोचने में आसानी रहेगी ।

                      एक अलग सी शालीनता थी नीलिमा के मुख पर '  किसी से ज्यादा बोलती नहीं थी , उसे किसी से सरोकार ना था पर मैं उससे बात करना चाहती थी...उससे बोलना चाहती 

थी ,  उसके बारे में सब जानना चाहती थी क्योंकि वह जब भी अपने घर से जाती थी या आती थी , अपनी  नजरें नीचे किए ही निकल जाती थी ।

                     आज मेरी उससे मिलने की इच्छा भी पूरी होने वाली थी , अभी-अभी उसके फ्लैट के दरवाजे पर डाकिया एक पत्र अटका कर चला गया था , मैंनें  उस पत्र  को दरवाजे से जल्दी से उठा लिया और मन ही मन मुस्कुरा उठी , यही देने के बहाने उसके घर हो आऊंगी ।

                चार बजे के करीब नीलिमा घर आई तो कुछ ही देर बाद मैंने उसका दरवाजा खटखटा दिया , हल्की सी मुस्कुराहट से उसने मुझे नमस्ते बोली और पत्र हाथ में लेकर  अनौपचारिक रूप से मुझे अंदर आने का निमंत्रण दिया जो मैं चाहती ही थी कुछ देर बैठे , कुछ जान पहचान हुई और मैं भी उसे अपने घर आने का न्योता देकर घर वापस आ गई 

                      आज उसके बारे में कुछ ज्यादा नहीं जान पाई थी , बस यह पता चला कि उसका नाम अवनी है ।

                  दो दिन से अवनी मुझे दिखाई नहीं दे रही थी तो सोचा इंटरकॉम से फोन करके ही पता कर लेती हूं , फोन किया तो फोन पर उसकी आवाज बहुत धीमी और रूआंसी सी सुनाई दी ,  फोन रख मैं तुरंत ही उसके घर की ओर चल दी ।

                      अवनी पतझड़ में पड़े पीले पत्ते की तरह अपने चेहरे के पीलेपन को दबाने की कोशिश कर रही थी...

                   कोमल की तरह ही अवनी को अपनी बेटी सा मानकर मैंने  अपने सीने से लगा लिया और सिर पर हाथ फेर कर पूछा , क्या हुआ अवनी.. बीमार हो क्या ' 

          मेरे सहानुभूति के दो शब्दों से ही उसके अंदर जमा  दुख रुदन बन बाहर निकल आया , मुझे अवनी से हमदर्दी होने लगी इधर अवनी को भी शायद एक हमदर्द मिल गया था जिससे वह अपनी तकलीफ बांट सकने की संभावना तलाश रही थी ।

                             अजीब खालीपन लिए वो मेरे पास बैठी थी उसकी आवाज भारी हो रही थी , आंखें भर आई थी। आत्मीयता की ऊष्मा पाकर वह शायद अपनी खामोशी , आधी अधूरी अकेलेपन से भरी जिंदगी के दर्द मुझसे बांटना चाहती थी 

                           जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बीच वह किस तरह सामंजस्य बना कर चल रही है , शायद यही सोचकर उसके मन का सैलाब बहने लगा ।

                       स्नेह के स्पर्श से अभिभूत अवनी  धीमे-धीमे  रूंधे गले से मुझे बताने लगी , आज से 2 वर्ष पूर्व आज ही के दिन एक कार एक्सीडेंट में मेरा आकाश मुझे छोड़ कर ,इस दुनिया को छोड़ कर चिरनिद्रा में सो गया था….

            अवनी की पलकें लगातार छलक रही थी , उसके दुख की इंतहा सामने थी ।

                       मुझसे अपनेपन का स्पर्श पाकर धीरे-धीरे अवनी अपने अतीत को खोलने लगी... कितना डरावना होता है न '  '' है " का " था " हो जाना , कभी सोचा भी ना था कि एक दिन ऐसा भी आएगा , जब सब कुछ होगा पर मेरा आकाश मेरे साथ नहीं होगा ।

                              खुद के इर्द-गिर्द उसने लोहे की जो मजबूत चादर लपेट रखी थी , वह धीरे धीरे उतर रही थी... 

             आकाश और मेरा पहली बार मिलना बस एक संजोग ही था और जब हम मिले तो किसी फिल्म की तरह पहली नजर में प्यार वाले एहसास की अनुभूति हुई , सर्दी के चढ़ते सूरज की तरह उसने मुझे अपनी और खींच लिया था ।

                    आकाश का गोरा चिट्टा रंग , सरल पर आकर्षक व्यक्तित्व , ऊंचा लंबा गठीला शरीर था ठीक वैसे ही जैसे कोई सुंदर ग्रीक देवता हो ।

                  बिना कहे ही हमें एक दूसरे से  प्यार हो गया था निश्चल और निष्कपट प्यार , उसके प्यार के इजहार का बेहतरीन तरीका था भावों द्वारा प्यार की अभिव्यक्ति ।

                         हमारा मिलना लगभग रोज ही होता था , दो दिन ना मिल पाते तो मिलने का कोई ना कोई अवसर ढूंढ ही लेते , फिल्में देखने का शौक भी हम दोनों को ही था , कॉलेज के बाद हम दोनों अक्सर बाहर मिलते थे , दोनों को ही प्रकृति से प्यार था तो घंटों गार्डन की चहल-कदमी किया करते ।

              हम दोनों एक जैसे पागल थे , हरकतें बच्चों जैसी , पसंद नापसंद एक सी , सब्जी खाने से लेकर पहनने-घूमने फिल्में देखने का शौक एक सा , हमारी मस्ती बिंदासपन एक सा... 

              प्रेम में डूबे हम चले जा रहे थे…

                         मैं खुश... बहुत खुश थी कि वो मेरे लिए इतना समय निकालता है , मेरा बहुत ध्यान रखता है पर जहां उसे मुझमें लापरवाही दिखती ,  डांट भी  देता था ।

          मुझे वो हर तरह से अच्छा लगता था.. 

                   उसके आते ही वसंत ऋतु के फूलों की तरह मेरा मन भी खिल उठता था , तेज धूप की दोपहर में छाया देते घने पेड़ की तरह था मेरा आकाश , वह मेरी जिंदगी बन चुका था ।

             अब हम दोनों शादी करके अपना घर बसाना चाहते थे 

                    अवनी ,,, आज चलो .. तुम्हें मां से मिलवा कर लाता हूं , आज उनका जन्मदिन है , उन्हें शुभकामनाएं और तोहफा देकर रिटर्न गिफ्ट में अपनी शादी की हां करवा लेंगे.. हंसते हुए आकाश ने कहा

                          साकेत के मॉल से हमने मां के लिए एक नीले रंग की सिल्क की साड़ी खरीदी , हां... यही रंग..  बहुत पसंद था उसे , साड़ी लेकर हम लोग मां से मिलने के लिए निकल पड़े ।

                         धीमे-धीमे स्वर में बज रहे रोमांटिक गीतों का आनंद उठाते , गुनगुनाते हुए हम चले जा रहे थे कि अचानक ही सामने से गलत दिशा में तेज गति से एक ऑटो आ गया ,  ऑटो से बचते बचाते हुए कार बगल के डिवाइडर से  टक्कर खा गई और उसके बाद क्या हुआ पता नहीं

                           जब होश आया तो मैं अस्पताल में थी, ज्यादा नहीं.. मुझे बस कुछ हल्की चोटें लगीं थी,  प्राथमिक उपचार के बाद मुझे छुट्टी दे दी गई ,  मैंने आकाश के बारे में पूछा तो पता चला कि वह आईसीयू में है , उसके सिर में चोट लगी थी। 

     उसके परिवार वाले भी आ चुके थे ।

                         सारी रात कब बीती ' अस्पताल के उस बेंच पर , बैठे- बैठे पता ही ना चला ।

                     बस इंतजार था कि अब जल्दी से आकाश के होश में आने की खबर सुनूं  

            भयभीत सी थी मैं आकाश के लिए ' पता नहीं , क्या होगा 

         दिल बैठा जा रहा था... 

           सामने से  डॉक्टर आते हुए दिखाई दिए , हां…. उस डॉक्टर ने यही कहा…. वो नहीं बचा…. मैं सुन्न पड़ गई , मैं टूट गई... ऐसा लगा एक पल में मेरी दुनिया उजड़ गई ..

            सब कुछ थम गया... 

                      आकाश के शरीर में अब कोई हलचल नहीं हो रही थी , कभी ना चुप रहने वाला आकाश एक बेजान पुतले की तरह पड़ा  हुआ था आकाश की ऐसी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी ..

         मैं घुटनों के बल गिरने लगी शरीर की सारी ताकत जैसे बाहर निकल गई , डॉक्टर ने मुझे संभाला और आकाश के पास बिठा दिया... 

                        मेरे शरीर में पसीने का प्रवाह अत्यंत ही प्रबल हो गया था , मैंने उसका हाथ थाम लिया.. मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक पा रही थी... 

                 मैंने उसके माथे को स्पर्श किया और कहने लगी … तुम तो हमें  मां से मिलाने ले जा रहे थे और अब तुम ही देर कर रहे हो... उसका हाथ अपने हाथों में लेकर मैं चुप हो गई और उसका सिर सहलाने लगी

                            ऐसा लगता था वो व्याकुलता से मेरी ही ओर देख रहा था मानो कह रहा हो , मुझे बचा लो अवनी..  मुझे रोक लो अवनी... मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहता.. 

          उसकी अंतिम मंद गति से चलती सांसो में भी कितना भार होगा यह सिर्फ मैं जानती थी ऐसा लगता था अंत तक उसकी आंखें एकटक कमरे की छत को निहार रही थी 

                वो इतना... इतना दूर हो गया था मुझसे कि मुझे सुन नहीं पा रहा था और ऐसा लग रहा था कि मेरा दिल भी उसके दिल के साथ कहीं दूर चला गया है तभी तो मैं उसकी धड़कन महसूस नहीं कर पा रही थी ।

                          अब मैं जान चुकी थी कि यह सत्य है कि आकाश और अवनी का मिलन कभी नहीं हो सकता... 

         यह तो मुझे उसी दिन समझ लेना चाहिए था जब उसने मुझसे अपने जीवन के कैनवस में रंग भरने की अनुमति मांगी थी। 

            क्या-...क्या सपने देखे थे हम दोनों ने मिलकर… 

      उसका चले जाना ऐसा था जैसे आसमान में खूब ऊंचे उड़ते पंछी के पंख टूट जाना , अब वह पंछी अपने आप को कैसे संभाले... कैसे जमीन पर उतरे...

                 आज दो वर्ष हो गए आकाश को मुझ से बिछड़े हुए पर एक अहसास आज भी जिंदा है .. जो उसके होने का अहसास मुझे बार-बार दिलाता है और वह है उसके लिए मेरा प्यार... वो प्यार आज तक नहीं मरा जो प्यार हम दोनों के बीच में था ।

                      हम दोनों एक ही आत्मा के दो हिस्से थे.. 

             मेरे अंदर आकाश बसा हुआ है , अभी भी पूरा का पूरा... जिसे मैं हर सांस के साथ महसूस करती हूं आज भी हर पल , हर वक्त उसकी प्यारी मुस्कान , चेहरे की सादगी , उसके साथ गुजारे हुए पल मुझे अंदर तक कचोटते रहते हैं ।

          पलके बंद कर जब भी मैं नींद की गहराइयों में जाने लगती हूं आकाश का चेहरा अक्सर सपने में अक्स बनकर उभरने लगता है , मैं तड़प कर उसकी बाहें ढूंढने लगती हूं... पर….पर शून्य पाकर….  जी करता है... उसे ढूंढ कर उसके सीने से लग कर रो लूं 

        ऐसा लगता है जैसे आज भी वो मेरे साथ है 

                        रात में , दिन में... आज भी मैं वैसे ही उसके उस फोन का इंतजार करती हूं जब वह प्यार में डूबा कहा करता था.. आ जाओ न.. यार... तुम्हारे बिना मन नहीं लगता 

               इधर तुम पुकारते थे और मैं भी भागी भागी चली आती थी तुम्हारे पास 

                    लेकिन मेरा ये इंतजार अब इंतजार ही रह जाता है……

                  फिर मैं उसी स्थान पर जाकर सड़क किनारे बैठ जाती हूं जिस राह पर अंतिम बार हम दोनों एक साथ जा रहे थे , जहां से आकाश ने मेरा साथ सदा के लिए छोड़ दिया था... 

        पर क्या हम सच में अलग-अलग हो पाए..

                            आंखें तो आकाश को आज भी वहीं तलाशती हैं , उसकी बाट देखती हैं ...वहीं उसी सड़क पर ... 

           और सच में …. वहां आकाश मेरे पास आकर बैठता भी है ,  मैं उसे महसूस करती हूं ,  उससे बातें भी करती हूं लेकिन फिर वो चला जाता है , मैं उसे पुकारती हूं परंतु वो नहीं रुकता..

                      एकाएक ऐसे लगता है कि भीड़भाड़ वाले मेले में मैं सबसे बिछड़कर अकेली हो गई हूं , जिस हाथ को पकड़े मैं चल रही थी वह छूट गया है 

            मैं बहुत जोर से रोने लगती हूं पर जानती हूं मेरी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं दे रही होगी ... 

                         नहीं,,.... नहीं वो शाम हमारी मुलाकात की आखिरी शाम नहीं थी , आकाश आज भी मेरे साथ है , आस पास ही है , आज भी मैं उसे इन हवाओं में हर क्षण महसूस करती हूं.. 

            जानती हूं  वो भी मुझे हर पल देख रहा है इसीलिए तो आज भी मैं उसके मनपसंद नीले रंग के ही कपड़े पहनती हूं , मेरे हर परिधान का रंग नीला है , उसका पसंदीदा रंग ही मेरी पसंद बन गया है 

                         मेरे भीतर-बाहर उसकी खुशबू आज भी वैसे ही... उसी तरह महक रही है . 

                 आज भी बरसते बादलों की फुहार से भीगी जमीन की खुशबु मुझे उसके साथ बिताए हर लम्हों की याद दिलाती है आज भी  याद बनकर हल पल वो  मेरे साथ है , मैं तो अक्सर ख्वाबों में भी उससे बातें किया करती हूं उसकी आवाज सांकल सी बजती है आज भी मेरे अंदर.. 

                             आकाश का इंतजार मेरे लिए लंबा ही सही...

                         एकाएक अवनी चुप हो गई  शायद वह भ्रम में से यथार्थ में आ गई थी जिस भ्रम को साकार करना चाहती थी वही अधूरा ख्वाब टूट गया , आंसू पोंछ कर वह पत्थर सी बन बैठी  थी..

                               शायद अपने सवालों के जवाब खुद ही तलाश कर लिए थे , अवनी ने '

               हां.. जितने भी दर्द मिलते हैं मिल जाए आकाश हमेशा से मेरे लिए अनमोल रहा है , समाज हमारे इस अलौकिक रिश्ते को  स्वीकार ना करे पर वो मेरे साथ हमेशा ही रहेगा , हमारी पवित्र दोस्ती एक रिश्ते में बदल चुकी है जिसे मैं आकाश के जाने के बाद भी बिखरने ना दूंगी... 

                     आज तक आकाश ने मुझे बांधा हुआ है अपनी यादों से , उन पलों से.. जिन से मैं स्वयं भी  मुक्त होना नहीं चाहती ,

              यह सच है सबकी जिंदगी में एक ऐसा वक्त जरूर आता है जिसे हम वापिस जीना चाहते हैं , मेरा तो वह वक्त आकाश से ही शुरु होता है और आकाश पर ही खत्म होता है , उस वक्त को ही मैं वापिस जीना चाहती हूं ,,, हर बार लगातार...

                    हमेशा लगता है  हम दोनों के , उन पलों की कोई कैसेट होती तो मैं उसे रिवर्स करके सदैव चलाती रहती

                     पर मेरे पास तो  रह गई , कभी न भर पाने वाली आकाश की कमी….. 

             मुझे तलाश कर आकाश ना जाने कहां चला गया...

                रोज रात समंदर दिल में समेटे , आंखों में तूफ़ान उठता है पर छोरों से टकराकर कहीं वापिस लौट जाता है ।

      भले ही शरीर ना हो , रूहानी रूप से मेरा आकाश आज भी मेरे पास ही है.. 

             उसे कैसे अलविदा कह दूं…

    भीगी आंखों से अवनी मुझे देख रही थी..

                         अवनी की कहानी मेरे अंतर्मन को छू गई थी , मैं पूछना चाह कर भी ना पूछ पाई तुम सारी जिंदगी उसकी यादों के सहारे कैसे काट पाओगी..अवनी..

         ... मैं जानती थी उसका जवाब यहीं होगा 

       दिल की हर धड़कन में 

गूंज तुम्हारे प्यार की आती है 

                 तेरे बिना जीना नहीं 

                यह माना था मैंने पर

 तेरे बिना पड़ेगा जीना 

 ये जाना न था मैंने  

           डायरी में रह गए जो पन्ने खाली 

          लिखने अकेले ही है मैंने...

                      

                                शायद यही सच्चा प्यार है , अवनी और आकाश का... जो आकाश के जाने  के बाद भी अवनी में बरकारार है…

 

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