प्रेरक कथा*
भोर का समय है ,पूरब से लाली फूट रही है /सूर्य की किरणें धरा पर, प्रकाश और उल्लास बिखेर रही है /पंछी चहक रहे हैं पुष्प महक रहे ,जिंदगी निद्रा से जाग रही है /
गरीब धनपाल की कुटिया में भी सूरज ने दस्तक दी /धनपाल की आंख खुली , उसने प्रभु का स्मरण कर ,अपने पुत्र को प्रेम से जगाया /उसके माथे पर हाथ फेरा ,उसकी आंखों को सहलाकर गले से लगाकर बेटा उठ जा ,आज तेरे विद्यालय का पहला दिन है ,पिता ने पुत्र को स्नान कराकर वस्त्र पहनाकर तैयार किया /
दो रोटी और अचार लंच बॉक्स में रखकर पुत्र को स्कूल छोड़ने गया /रास्ते में सोहन से पिता ने कहा बेटा अपन गरीब है ,सबसे पीछे बैठना , गुरु जी को हाथ जोड़कर प्रणाम करना ,जब गुरुजी पढ़ाएं तब आंख गुरुजी पर रखना, कान गुरु जी के शब्दों पर रखना , गुरुजी जब कुछ पूछे ,खड़े होकर हाथ जोड़कर विनय पूर्वक उत्तर देना ,किसी से लड़ना झगड़ना नहीं / तेरी पढ़ाई पर ही तेरा भविष्य है ,जो गरीबी मैंने भोगी है , वह तुझे ना भोगना पड़े, बेटा मन लगाकर पढ़ना ,आदि शिक्षा देकर धनपाल पुत्र को विद्यालय परिसर में छोड़कर ,भारी मन से घर आ गया /
गांव में पांचवी तक पढ़ाने के बाद ,धनपाल बिन मां के बेटे की पढ़ाई के लिए , शहर आया है /सोहन भी चिंतित था ,पता नहीं क्या होगा ,नया शहर है , नया स्कूल है/ गांव की बात कुछ और थी /प्रार्थना की घंटी बजी ,सभी छात्रो ने लाइन में खड़े होकर प्रार्थना की /प्रार्थना उपरांत सभी छात्र अपनी कक्षा में पहुंचे /आगे की पंक्ति में कुछ छात्रों ने अपने बस्ते पहले ही रख दिए थे /फिर भी वहां बैठने में छात्रों में धक्का-मुक्की हुई /सोहन चुपचाप सबसे पीछे बैठ गया /सोहन की भोली मुद्रा पर गुरुजी का ध्यान गया , और पढ़ाते समय उनका उपयोग सोहन पर ही ज्यादा रहा /सोहन की पढ़ाई चलती रही ,सोहन अपने व्यवहार एवं तीक्ष्ण बुद्धि के कारण गुरुजी की निगाह में स्थान पता चला गया /
एक दिन गुरुजी ने कहा बेटे तुम पीछे क्यों बैठते हो ,आगे बैठा करो / अगले दिन सोहन आगे की पंक्ति में बैठ गया /गुरु जी अभी आए नहीं थे ,जो छात्र आगे बैठते थे वह सोहन से झगड़ा करने लगे / उसने कुछ नहीं कहा , उन्होंने उसका बस्ता उठाकर पीछे फेंक दिया /सोहन रोने लगा ,तभी गुरुजी कक्षा में आए /हंगामा देख गुरु जी ने पूछा क्या हुआ ? सभी छात्र सन्नाटे में आ गए , गुरु जी ने सख्त लहजे में फिर पूछा क्या हुआ ,इतना शोर क्यों ? तब जिसके हृदय में सोहन के प्रति मित्रता का भाव उमड़ रहा था , ऐसे सहृदय मोहन ने कहा, गुरुजी आगे के इन 4 छात्रों ने सोहन का अपमान किया ,उसका बस्ता तक पीछे फेंक दिया / गुरु जी ने सभी छात्रों को बैठने का संकेत किया /प्रेम से 4 छात्रों से पूछा तुमने सोहन का बस्ता क्यों फेंका ? उनमें से दीपक बोला झोपड़पट्टी में रहने वाला, महलों में रहने वालों की बराबरी कैसे कर सकता है /कहां उसके फटे कपड़े कहां हमारी राजसी पोशाक , यह हमारे साथ कैसे बैठ सकता है /प्रतिदिन तो पीछे ही बैठता था /गुरु जी ने प्रेम से, सभी छात्रों को समझाया /बताइए दोनों हाथों में से बड़ा हाथ कौन सा है / ब्राह्मण छात्र तिलकराज ने कहा ,दाया हाथ बड़ा है /गुरुजी ने पूछा दाया हाथ बड़ा क्यों है ? तब बणिक छात्र शुभम ने कहा सीधे हाथ से दान देते हैं, तिलक लगाते हैं, भोजन करते हैं, गुरुजी ने पूछा बाया हाथ छोटा क्यों है ? तब किशोर पंडित ने कहा बाएं हाथ से मल द्वार को साफ करते हैं / सब की बात सुनकर गुरुजी ने कहा ,अब मेरी बात ध्यान से सुने / प्रातः काल जब बाया हाथ हमारे शरीर की गंदगी को साफ करता है, तब दाया हाथ बाएं हाथ की शुद्धि में सहयोग करता है / भोजन के बाद जब हमारा दाया हाथ ,भोजन से सना होता है ,तब उसको साफ करने वाया हाथ सहयोग करता है /संसार में हर वस्तु हर व्यक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण है /यहां कोई छोटा बड़ा नहीं है /हमारी बुद्धि ही छोटी बड़ी है /फैले हुए हाथ से हम भोजन नहीं कर सकते , पांचों उंगलियां मिलती है , तब रोटी मुख में जाती है /ठीक इसी प्रकार से समाज के सभी व्यक्ति आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं ,तब जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ती है /इसलिए छोटे बड़े का भेद भूलकर आपस में मिलकर रहना सीखो / अभी आप सबको जिंदगी में बहुत आगे बढ़ना है ,कल कौन क्या बनेगा , कहा नहीं जा सकता / मिलकर रहने की कला ही , जीवन में काम आती है /चारों छात्रों को अपनी गलती का बोध हुआ ,वह उठकर गए और सोहन से क्षमा मांग कर अपने साथ बैठाया / सभी छात्रों ने ताली बजाकर इस पावन दृश्य का स्वागत किया / सोहन की पढ़ाई चलती रही, वार्षिक परीक्षा का रिजल्ट आया /सोहन जो हमेशा पीछे बैठता था आज विद्यालय में सबसे आगे था ,और कुछ वर्ष बाद एक दिन सोहन कलेक्टर बनकर उसी विद्यालय में छात्रों को पुरस्कृत कर रहा था /
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