उलझनों के झूले






उलझनों के झूले

 

 

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं। 

 

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है।

 

 

 जिंदगी  हर त्यौहार को ,

 

हर हाल में उदास होकर भी, 

 

खुशियों के झूले पर झूल जाती है।

 

 

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं।

 

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।

 

 

जिंदगी हर दिन ,

 

नयी लड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ।

 

 

रोते हुए भी मुस्कुरा कर,

 

 सब ठीक है.......!!!!

 

 यह बात कह जाती है ।

 

 

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं। 

 

अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।

 

 

जिंदगी में झूले ही ,

 

नहीं मिलते हर पल ।

 

रस्सियों पर झूलती ।

 

जिंदगी भी ,

 

अपनी बात कह जाती है।

 

 

खुशियां कीमतों से ही नहीं खरीदी जाती ।

 

 मुस्कुराने के लिए हर दर्द से उभरकर ,

 

जिंदगी हर बात कर जाती है।

 

प्रीति शर्मा असीम नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


 

 




 

 



 



 



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