वर्मा आन्टी
रमा भाटी
साल भर पहले की बात है मैं बाजार से घर पहुंची तो मेरे सामने वाले फ्लेट से मिली जुली आवाजें आ रही थी, कभी सिसकने ने कभी गिड़गिड़ाने की और कभी किसी आदमी की ऊंची आवाज़ बहुत अजीब लगा क्या करूं,मैं अपने फ्लैट में चली गई आवाजें अभी भी आ रही थीं।अचानक जोर से दरवाजा खुला और कोई जल्दी-जल्दी नीचे सीढ़ियों से उतर गया, मैंने धीरे से दरवाजा खोला और पड़ोस के फ्लैट में गई।वहां मैं पहली बार गई थी क्योंकि नौकरी की वजह से सारा दिन बाहर रहती हूं।मैंने वहां एक बुजुर्ग आंटी को देखा कि वह धीरे-धीरे सिसक रही थी मैंने डरते हुए उनके कंधे पर हाथ रखा तो वह घबरा कर चौक गई,मैंने उन्हें बताया मैं पड़ोस में ही रहती हूं और फिर उन्हें पहले पानी पिलाया।वर्मा आंटी ने बड़े प्यार से मुझे देखा और अपने पास बिठाया,तो मैंने पूछा आपको क्या हुआ कौन था जो गुस्से से बाहर गया है।तो उन्होंने सिसकते हुए बताया उनका बेटा है, जो कि बात बात पर गुस्सा हो जाता है और अपनी मनमानी करता है।
असल मैं उसके पिता की असमय मृत्यु हो गई थी, तो मैंने आगे पढ़ाई करके अध्यापिका की नौकरी करते हुए बहुत मुश्किलों से इसे पाला है।मेरे साथ कोई बड़ा बुजुर्ग भी नहीं था कि मुझे सहारा मिलता। रिटायरमेंट के बाद तबीयत भी ज्यादा साथ नहीं देती। बेटा है कि मेरे प्यार और ममता का फायदा उठाता है, जिद पर अड़ा है कि मैं फ्लैट भेज दूं और उसे विदेश पढ़ने के लिए भेजुं। मैंने पूछा कि फिर मैं कहां जाऊं तो बोला आप अकेली क्या करेंगी, आप वृद्ध आश्रम में आराम से रहना वहां आप जैसी और भी वृद्धा होंगी, मेरा तो यह सुनकर मन ही बुझ गया जिस बेटे के लिए मैंने अपनी जिंदगी की सारी खुशियां कुर्बान कर दी उसकी यह सोच है मेरे लिए। जबकि इस वक्त मुझे उसकी ज्यादा जरूरत है और आंटी फिर धीरे-धीरे रोने लगी मैंने उन्हें किसी तरह थोड़ा समझाया और अपना फोन नंबर उनको दे दिया। उनकी आयु 64 की होगी और वह 70 के करीब लग रही थी हम दोनों के बीच कुछ देर वार्तालाप हुई हालातों से कैसे निकलना है। आंटी मुझे सुलझी हुई औरत लगी मैंने कहा आप अपनी मित्रता बढ़ायें आपका मन भी बहलेगा और जरूरत पड़ने पर एनजीओ से भी सहायता ले सकते हैं और अगर बेटा ज्यादा ही तंग करे तो पुलिस से भी मदद ली जा सकती है। सिर्फ बेटे को डराने के लिए मैं हैरान थी की वर्मा आंटी को इन बातों की जानकारी थी लेकिन मां की ममता आड़े आ रही थी मैं कुछ देर बैठ वापस आ गई।
अगले दिन ऑफिस जाते समय सुबह उन्हें बालकोनी में देखा नमस्ते करी आंटी ने भी प्यार से मुस्कुराते हुए मुझे देखा जैसे आशीर्वाद दे रही हो। धीरे-धीरे हम दोनों की फोन पर भी बात होने लगी और वह भी रोज सामने बाग में जाने लगी। इसी तरह उनकी कुछ सहेलियां बन गई, अच्छा लगता उनमें आत्मविश्वास जाग रहा था। अब उनकी सहेलियां भी कभी-कभी उनके घर आती, उनमें से उनकी एक मित्र के पति पुलिस में थे उन्होंने कहा कभी भी मदद की जरूरत हो तो बताइए। अब मैंने महसूस किया की उनके घर से आंटी की ही कड़क दार आवाज आती थी।अब वह अपने बेटे को सख्ती से समझाती अगर विदेश पढ़ने का शौक है तो अच्छे नंबर लाओ, मेहनत करो और फिर पैसा कमाओ तब तुम्हें एहसास होगा कि पैसा कितनी मेहनत से कमाया जाता है,फिर तुम्हारी इच्छा कि कहीं भी जा कर पढ़ाई करो।मैं यह फ्लैट नहीं बेचुंंगी ना ही अब फालतू खर्च के लिए पैसा दूंगी।
हां अगर तुम ढंग से मेरे साथ रहना चाहते हो तो मुझे खुशी होगी, अब उनके बेटे को भी समझ आने लगी कि मां बेबस और लाचार नहीं है। मैं ही गलत था कि जिस मां ने मुझे इतना प्यार दिया उसे ही इस आयु में वृद्धाश्रम में जाने के लिए कह रहा था,कि मैं अपने सपने पूरे कर सकूं यही सोचते-सोचते वह सो गया। अगली सुबह आंटी उसके लिए चाय का प्याला लेकर कमरे में गई तो वह उठकर मां को अपने पास बिठाकर रोते-रोते माफी मांगने लगा ।तो आंटी ने उसके बालों पर हाथ फेरा और कहा बेटा मैं तुम्हारी हर बात मानती थी कि तुम्हें कभी अपने पापा की कमी महसूस ना हो और अपनी जिंदगी सिर्फ तुम्हारे इर्द-गिर्द की बना ली और तुमने इसे मेरी कमजोरी समझा जो कि गलत सोच थी, मैं अभी इतनी वृद्ध भी नहीं हूं कि अपनी देखभाल ना कर सकूं, बुजुर्ग होती मां की भावनाओं को तुम्हें समझना चाहिए। आशा है बेटा तुम्हें मेरी बात समझ आ गई होगी और इस तरह वर्मा आंटी को जीने की नई दिशा मिल गई।
रमा भाटी
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