भगवान कैसे दर्शन दे
डॉक्टर, डाक्टर और आचार्य वाजपेयी की चिट्ठी'
.शरद की ये रात.*
ढाई अक्षर
मुझे ठीक से याद नहीं है कि मैने कब पढा था *पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय *ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय* अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है- *ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि* *ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर की लक्ष्मी* *ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता।(राधा रानी का दूसरा नाम)* *ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति* *ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति* *ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान* *ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा* *ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म* *ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा* *ढाई अक्षर का ग्रन्थ और ढाई अक्षर का सन्त* *ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ* *ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या* *ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि* *ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड* *ढाई अक्षर का मन्त्र और ढाई अक्षर का यन्त्र* *ढाई अक्षर की श्वांस और ढाई अक्षर के प्राण* *ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु* *ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी* *ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का युद्ध* *ढाई अक्षर का मित्र और ढाई अक्षर का शत्रु* *ढाई अक्षर का प्रेम और ढाई अक्षर की घृणा* *जन्म से लेकर मृत्यु तक हम बंधे हैं ढाई अक्षर में।* *हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में और ढाई अक्षर ही अन्त में।* *समझ न पाया कोई भी है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।* मधुबाला |
*वैश्विक राम महोत्सव भव्यता से सम्पन्न
प्रेम सदा जिन्दा रहता है
प्रेम सदा जिन्दा रहता है अमर है प्रेम दुनियाँ में पुराणों ने जिसे गाया। ऋषी मुनि संत की वाणी विवेकानन्द अपनाया।। वो आखर प्रेम का ढाई कवीरा बोल देता है। पढे जो ध्यान से उसको तो आँखे खोल देता है।। ज़माने की नज़र में वो,बसा बन्दा रहता है। मैट कर नफ़रतों को प्रेम,सदा जिन्दा रहता है।। मुसीवत पार हो हद से मगर विचलित नहीं होता। मोहब्बत की करे खेती वो चद्दर तान कर सोता।। विषैली हो हवा फिरभी सुगन्धित गन्ध फैलाये। न जाती धर्म का वंधन बेर शबरी के खा जाए।। बुरायी हो कहीं इक दिन,वो शर्मिन्दा रहता है। मैट कर नफ़रतों को प्रेम------------------------ प्रेम पूजा तपस्या है प्रेम भगवान का घर है। पिया विष प्रेम का प्याला बनी मीरा दिवाकर है।। कहीं पर रामबोला है कहीं नानक की वानी है। कहीं प्रहलाद ध्रुवतारा अमर हो गयी कहानी है प्रेम है सार जीवन का,पी वो छरछन्दा रहता है। मैट कर नफ़रतों को प्रेम------------------------ राजबीर सिंह"क्रान्ति" धौलपुर---राजस्थान |
मुक्तक
मुक्तक सुना है नया चुनाव आया है। प्रजातंत्र में तूफान आया है। रैली के पर सुर्खाब लगे हैं । वायदोंका संसार आया है । सफेद कपड़ो की मांग बढ़ी है। गांधी टोपी सिर चढ़ी है । आसमान कदमों पर होता था। अब तले जमीन खिसकी पड़ी है। गली गली बंदरवार सजे हैं। ढोल नगाड़े जोरो बजे हैं । लगे हैं कोई त्यौहार आया है। जनता के देखो बहुत मजे हैं। नेता जी से मिलने जब जाते। पसीने से सरोबार हो जाते । अब यहां ऊंट पहाड़ के नीचे हैं। हाथ जोड़े जन-जन को लुभाते।। विकास का सपना दिखाते हैं। विकास पीछे खुद भाग जाते हैं। अबकी जो झूठों की बहार है। कुर्सी दौड़ कौन जीत पाते हैं । चंद्र किरण शर्मा, भाटापारा। |
बहारों की मंजिल
बहारों की मंजिल सुधा की शादी के कुछ समय पश्चात ही पति विनय का एक्सीडेंट हो गया और वह भरे हुए संसार में अकेली रह गई। ससुराल में उसकी पहचान एक अशुभ के रूप में बनकर रह गई जिसकी वजह से पति की अकाल मृत्यु हो गई थी । वह ससुराल से अपने पीहर आ गई और छोटी सी नौकरी करके अपना जीवन बिताने लगी। उसकी उम्र को देखकर अक्सर लोग उसे कहते कि उसको दूसरा विवाह कर लेना चाहिए लेकिन सुधा कुछ नहीं बोलती और मन मन मे ये सोच कर रह जाती कि कभी तो उसे फिर बहारों की मंजिल मिलेगी । । कभी तो कोई ना कोई मेरे जीवन में आएगा । जब आना होगा आ जाएगा य। ये सोच उसने कभी इस नजर से कोई प्रयास नही किया और ये फैसला ईश्वर पर छोड़ दिया क्योंकि उसे विश्वास था कि वो जो करेगा acha ही करेगा। इसी तरह तरह से काफी समय बीत गया और एक दिन सुधा के जीवन में उसकी सहेली नीलम के जरिए एक पुरुष का प्रवेश हुआ। शीघ्र ही दोनों बहुत करीब आ गए । उसने सुधा के सामने विवाह प्रस्ताव रखा।सुधा भी अब तक उसे पसन्द करने लगी थी। दोनों ने विवाह का निश्चय किया । सुधा ने अंततः बहारों की मंजिल को प्राप्त कर ही लिया । शबनम भारतीय |
हे मां
प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है
प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है जीवन भर सपनों में खोया, देख बुढ़ापा अंत में रोया। चढ़ा जो सूरज ढलता है, सन्त सदा ,यही कहता है। बस! प्रेम सदा,ज़िंदा रहता है।। जीवन भर की पाप कमाई, अंत समय न काम आयी। साथ नहीं कुछ चलता है, सन्त सदा यही कहता है। बस! प्रेम सदा,ज़िन्दा रहता है।। जीवन धारा को मोड़ दो, राग-द्वेष को तुम छोड़ दो। क्यों ग़फ़लत में रहता है? सन्त सदा,यही कहता है। बस!प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।। नफ़रत को दिल से निकाल, वक़्त कम है, वृति सम्भाल। क्यों दुःख-सुख सहता है? सन्त सदा यही कहता है। बस ! प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।। टूट जाते हैं,सुंदर सपनें, छूट जाते हैं,प्यारे अपने। जड़-चेतन सब मरता है, सन्त सदा यही कहता है। बस!प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।। तारा "प्रीत" जोधपुर (राज०) |
बड़की,बड़ी ना हुई......
जीवन
मेरी पहचान है कविता
बिटिया खुश रहना ससुराल
बिटिया खुश रहना ससुराल छुटे बाबुल का यह घर बचपन , आंगन और दर बिछडे संगी और सखी पीहर की ये प्यारी गली बिटिया चली ससुराल को...... छुटे माँ,बापू,काका,काकी बहन और भैया -भाभी अपने पिया के संग चली अपनी ससुराल की गली बिटिया चली ससुराल को...... भूल ना जाना यह घरबार बिटिया खुश रहना ससुराल बसे तेरा प्यारा घर संसार हर दिन हो नया त्यौहार बिटिया चली ससुराल को...... ससुराल का रखना मान रहना पीहर सा घर जान वहीं बसे तेरे मन प्राण कभी करना यंहा का ध्यान बिटिया चली ससुराल की...... --------- *संजय गुप्ता देवेश* |
यह मेरी पहचान है कविता
यह मेरी पहचान है रचना
*अनावश्यक स्तरहीन टीका टिप्पणियों से बचें प्रवचनकार*
*अनावश्यक स्तरहीन टीका टिप्पणियों से बचें प्रवचनकार* डॉ अनेकान्त कुमार जैन चाहे कोई भी प्रवचनकार हों ,उनकी सभा में हजारों लाखों श्रोता आते हों ,भले ही वे करोड़ों में खेलते हों किन्तु किसी भी प्रवचनकार को चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी उन्हें स्वयं को भगवान मानने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए| श्रोता भक्ति के अतिरेक में भले ही उन्हें भगवान से भी बड़ा मानते या कहते हों पर उन्हें हमेशा यह मान कर चलना चाहिए कि वे सर्वप्रथम एक मनुष्य हैं और सामाजिक भी। वर्तमान में प्रायः यह देखने में भी आ रहा है कि धार्मिक ग्रंथों के प्रमाण दे दे कर अपने से अन्य सम्प्रदाय के अनुयायियों और उनके देवी देवता, आराध्यों तथा साधुओं पर भी खुल कर टीका टिप्पणी हो रहीं हैं तथा उन्हें मिथ्यात्वी,मायावी और भ्रष्ट करार देने का सिलसिला चल रहा है । यह अशुभ संकेत है। सबसे पहला सिद्धांत है कि निंदा किसी की भी नहीं करनी चाहिए। यह रागद्वेष भाव का सूचक है जो कि धर्म क्षेत्र में निषिद्ध है । हम यह ध्यान रखें कि हमारी जरा सी भूल कितने रक्त पात और दंगों को जन्म दे सकती है । कुछ असामाजिक तत्त्व तो हमेशा इसी तलाश में रहते हैं कि उन्हें कुछ मौका मिले और वो उसमें मिर्च मसाला मिला कर उसका दुरूपयोग करें । इन टिप्पणियों से कुछ हासिल नहीं होता|बल्कि हमारी सामाजिक समरसता और सौहार्द में बाधा पहुँचती है। धार्मिक प्रवचनों में राजनेताओं पर भी कोई टिपण्णी नहीं होनी चाहिए।शास्त्र सभा की अपनी एक मर्यादा होती है।आज जो पब्लिक प्रवचन के नाम पर व्यंग्य ,शेर और शायरियां से युक्त भाषणबाजी चल रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है।यह धर्म प्रचार नहीं है । यह धोखा है।बिजिनेस है।आज यह अच्छा लग रहा है कल इनकी कीमत भी हमें ही चुकानी पड़ेगी। मेरा सभी आदरणीय प्रवचनकारों से विनम्र अनुरोध है कि कृपा करके मात्र धर्म अध्यात्म की ही चर्चा किया करें,अनावश्यक टीका टिप्पणियों से बचें,अपनी भाषा मधुर और विनम्रता वाली रखें | सत्य का प्रतिपादन चिल्ला चिल्ला कर नहीं किया जाता | धार्मिक शास्त्रों में भी यदि कोई ऐसे प्रसंग आते भी हैं जिनसे सामाजिक सौहार्द को नुकसान होता हो तो उन्हें भी अचर्चित रखें ,उनकी उपेक्षा करें । ऐसे सत्य का भी उद्घोष नहीं करना चाहिए जिससे शांति भंग होती हो। कहा भी है - यद्यपि सत्यं लोकविरुद्धं,न चलनीयं न करणीयं और न वदनीयम् मेरी तरफ से जोड़ लें । *कहते हैं बोलना सीखने में दो या तीन वर्ष लगते हैं किन्तु क्या बोलना, कब बोलना,और कैसे बोलना यह सीखने में पूरा जीवन लग जाता है।* कुछ हल्के स्तर के लोग अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए जानबूझ कर भी विवाद उठाते हैं , तिल का ताड़ बनाते हैं । बड़े, प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध लोगों पर टिप्पणी करके स्वयं को लाइम लाइट में लाने का प्रयास करते हैं । कई बार वक्ता यह कहते पाए जाते हैं कि मैं धर्म की रक्षा के लिए ही बोलता हूं । मैं तो सच के साथ हूँ , मैं सच कह रहा हूँ ,और सच तो कड़वा होता ही है ,किसी को बुरा लगे तो मैं क्या करूँ । कोई सच कहने की हिम्मत कर तो रहा है , इसके लिए बहुत साहस चाहिए । ऐसा कह कर कुछ भी बोलने की आजादी के पक्ष में तर्क मजबूत करने लगते हैं । यह बात सही है कि सच बोलना आसान बात नहीं है उसके लिए बहुत साहस की जरूरत होती है किंतु इस साहस के साथ साथ सलीका भी उतना ही आवश्यक होता है । मैं तो यहां तक कहता हूं कि *यदि सलीके का प्रशिक्षण न हो तो सच बोलने का साहस भी नहीं करना चाहिए* । क्यों कि सलीके के अभाव में सच झूठ से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है । वैसे सच्चे धर्म की रक्षा के तर्क के आधार पर ही सभी तरह के आतंकवाद का जन्म होता है । *यह भी बिडम्बना ही है कि धर्म की रक्षा के लिए ही तलवार और बंदूकें उठाकर अधर्म करने की शिक्षा अधिकांश धर्म क्षेत्र में ही दी जाती है ।* पहले प्रवचन मंदिरों की चार दीवारी में ही होते थे,कोई बात ऐसी वैसी हो भी जाय तो वहीँ तक सीमित रहती थी । भक्त श्रोता भी तत्कालीन देश काल परिस्थिति की अपेक्षा समझते थे । कोई विवाद हो भी जाय तो उसका शमन भी वहीं हो जाता था । किन्तु आज टी.वी.पर प्रसारित होते हैं, सी.डी.में बिकते हैं ,यू.ट्यूब पर दीखते हैं, फ़ेसबुक ,व्हाट्सएप,इंस्टाग्राम आदि पर चलते हैं । तब ऐसे दौर में अत्यंत सावधानी पूर्वक वो ही बातें बोलनी चाहिए जो सार्वजनीन हों तथा सभी के हित की हों । अन्य धर्मों तथा अपने ही धर्म के विभिन्न पंथों पर अशिष्ट ,स्तरहीन और शर्मनाक टिप्पणी करके हम किस दिशा में जा रहे हैं ? हमें यह कब समझ में आएगा कि हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं । गलत को गलत कहने के लिए भी शिष्टाचार को तिलांजलि देना क्या उचित है ? क्या विनम्रता से अपनी असहमति प्रगट करने की कला हमारे गुरुजनों से हमने नहीं सीखी ? हमारी इस तरह की करतूतों से हमारी पीढ़ी, परिवार ,समाज और धर्म को उसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ सकती है इसका अंदाजा है हमें ? कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म एक अफीम है । यद्यपि हम ऐसा नहीं मानते हैं । लेकिन जब सिरफिरे प्रवचन सुनते हैं तो लगता है कि धर्म के नाम पर जो कुछ परोसा जा रहा है वह जरूर किसी नशे की ही उपज है,जिसका नशा बिना विवेक के बोलने को प्रेरित करता है । यदि हम एक समझदार, सलीकेदार और जिम्मेदार वक्ता नहीं बन सकते तो हम शास्त्र गद्दी पर और धार्मिक मंचों पर बोलने के अधिकारी नहीं हैं । हम सभी को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए । ध्यान रहे- *कुछ ऐसे भी मंजर गुजरे है तारीखियों में* *लम्हों ने खता की है और सदियों ने सजा पायी है* |
तिरस्कार
युद्ध के परिणाम
युद्ध के परिणाम
दुशासन के लहू से,
अपने केशों को धो चुकी थी।
दुर्योधन की भी जंघा टूट चुकी थी।
कौरव वंश ख़ाक में मिल चुका था।
घर - घर में चिता जल रही थी।
विधवा और बच्चें रो रहे थे।
द्रौपदी मौन धारण कर,
शून्य में ताक रही थी।
अपने आप को दोषी मान रही थी।
कृष्ण पर नज़र पड़ते ही,
लिपटी और रो पड़ी।
अविरल अश्रु धारा रुकने का,
नाम नहीं ले रही थी।
सखा! यह क्या हो गया ?
यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।
युद्ध तो युद्ध है पाँचाली,
जो हारता है, वह तो हारता ही है।
जो जीतता है, वह भी हारता है।
कोई तन, कोई मन, कोई वचन हारता है।
केवल प्रतिशोध लेना चाहता है इंसान।
परिणाम के बारे में कहाँ सोचता है?
क्रोध ऐसी अग्नि है पाँचाली,
हर लेती है हमारी सोच को।
क्या मैं उत्तरदायी हूँ?
इतिहास मुझे किस रूप में पहचानेगा?
इसकी चिंता न करो पाँचाली।
भीष्म पितामाह ने प्रण ना लिया होता,
धृतराष्ट्र ने महत्वकाँक्षा का जामा न पहना होता,
दुर्योधन ने हठ का आवरण न ओढ़ा होता,
काश। शकुनि ने बैर की रस्सी का छोर न पकड़ा होता,
अम्बिका प्रतिशोध की ज्वाला में न जली होती,
कर्ण को सूत पुत्र का शूल न चुभा होता,
तुमने अंधे का पुत्र अंधा का कटाक्ष न किया होता,
तुम्हारा यूँ भरी सभा में, चीर हरण न हुआ होता।
काश। कुन्ती ने तुम्हें यूँ पाँचों में न बटवाया होता।
काश। कुन्ती ने कर्ण को अपनाया होता।
शायद यह युद्ध ही नहीं हुआ होता।
बच्चें यूँ असहाय सड़कों पे न घूम रहे होते।
विधवाओं का यूँ मातम न होता।
युद्ध कारण है प्रतिशोध का,
शांति विकल्प है, क्रोध का।
काश। दुर्योधन ने शांति प्रस्ताव मान लिया होता,
आज बच्चें यूँ यतीम न होते,
यूँ वंशशंकरीसंताने पैदा न होती।
युद्ध के विकल्प में शांति मिले,
उसका कोई सानी नहीं पाँचाली।
मनुष्य को भविष्य में आने वाले,
तूफ़ान की आहट को पहचानना होगा।
तूफ़ान कभी दबे पाँव नहीं आते,
दस्तक़ को नज़रंदाज़ न करो "शकुन",
वरन क्रोध रूपी तूफ़ान में,
बड़े - बड़े सूरमा भी ढह जाते हैं।
शकुन्तला अग्रवाल
कड़वा ज़ायका
कौंधते विचार
कौंधते विचार
कभी कभी मन बहुत उदास होता है मन करता है कि जी भर कर रोए, लिखते-लिखते आंखों में पानी बह रहा है। आखिर क्यों हम किसी के सही बात न करने या सही तरीके से व्यवहार ना करने से इतने दुखी हो जाते हैं तरह-तरह के विचार आने लगते हैं। खासतौर पर नाकारात्मक विचार बहुत तकलीफ़ होती है दिल में आखिर क्यों हुआ ऐसा क्या था जो इतनी नाराजगी जताई जा रही है। एक ही घर में रहते हुए उम्र ओर रिश्ते का भी लिहाज नहीं आखिर क्यों ओर इसी क्यों का जवाब सारी उम्र नहीं मिलता।
फिर दिमाग में विचार आता है कि क्यों हम अपने विचारों को लोकल ट्रेन में चढ़ने वाले यात्रियों की तरह अपना रहे हैं जो हर स्टेशन पर रुकती हुई चलती है और हर तरह के यात्री यानी विचार उतरते चढ़ते रहते हैं। ट्रेन में भीड़ रहती है। हमें अपने विचारों को राजधानी एक्सप्रेस के यात्रियों की तरह सोचना होगा ये ट्रेन ना तो हर स्टेशन पर रूकती है और यात्री भी कम होते है सिर्फ वो ही यात्री चढ़ते हैं जिन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचना है। यानी कि हमें फालतू के विचार अपने मन में ना लाकर अपने दिमाग को राजधानी ट्रेन कि तरह बनाना है जिसमें कम ओर साफ़ यात्री ही चढ़ते हैं। हम अगर फालतू के विचार अपने दिमाग में ना आने दें और अच्छे विचारों
को अपने मन में रखें तो बेहतर होगा ओर जीना भी आसान होगा।
इस सोच के साथ ही मेरे मन में कुछ हद तक उदासी खत्म हुई ये सोच कर कि हम दुसरो की सोच को तो ठीक नहीं कर सकते लेकिन अपने विचारों को सही रखते हुए मन में मैल ना आने दें और अपने को खुश रखना चाहिए। ईश्वर ने जो हमें उपहार में अच्छी सुरत ओर सीरत दी है। उस पर गलत विचारों का आवरण ना चढ़ने दें।
रमा भाटी
कहानी बड़ी सुहानी
अपनी मिट्टी को छोड़ कर
दोस्त दोस्त न रहा
आज आदमी बना स्वार्थी
दिल
अगर चाहते हो
धड़कता रहे दिल
तो दिल को
दिल से खुश रखिए
मुस्कुराते रहिए
थोड़ा व्यायाम करिए
प्राणायाम करिए
और हो सके
तो अपना काम
अपने हाथ से करिए
ना तनाव दीजिए
ना तनाव लीजिए
दुआ दीजिए
दुआ लीजिए
जितना भी गरिष्ठ
भोजन करना है
सुबह करिए सांझ नहीं
रात में तो बिल्कुल नहीं
अपने भोजन को
खुद ही समझिए
क्या प्रतिकूल है
क्या अनुकूल
जानिए और मानिए
और हो सके तो
अपने भोजन को ही
औषधि बना लीजिए
और बच्चों सी निर्मल मुस्कान
मुस्कुरा लीजिए
विधानाचार्य त्रिलोक जैन
वर्णी गुरूकुल जबलपुर
लाल बहादुर शास्त्री और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
लाल बहादुर शास्त्री
क्रांति काल का सच्चा योद्धा
कुशल नेतृत्व अनुपम विचार
हिंम सा हौसला सिन्धु सी समझ
भरा राष्ट्र प्रेम हृदय अपार
जय जवान जय किसान का नारा
धरती के लाल ने छेड़ा था
वो लाल बहादुर था बुद्धिमान
कर मे थी पतवार देश का बेड़ा था
सादा जीवन उच्च विचार
निर्धनों का सदा सहायक था
ईमानदारी रग रग में भरी
भारत मां का पायक था
बचपन से बाधाओं को झेला
जो त्याग तपस्वी ज्ञानी थे
दूरदर्शिता के परिचायक
राष्ट्र प्रहरी सेनानी थे
सामना डटकर करते
हर संकट तूफानों का
धीरज धर आगे बढ़ते
रखते तोड़ व्यवधानो का
नई प्रेरणा मार्गदर्शन
उनकी यादें दे जाएगा
जन्मदिन लाल देश का
जन मन में उमंग जगाएगा
महा सिंधु महापुरुष की
जीवनी हमें खूब सिखाती है
सादगी भरे जीवन में ही
विलक्षण शक्तियां आती है
शांति वार्ता खातिर हम तो
ताशकंद में छले गए
शांति दूत बन भारत के
वो लाल देश के चले गए
भारती के लाल आप को
शत-शत वंदन अभिनंदन है
पावन है वह जन्मभूमि
माटी का कण कण चंदन है
===================
===================
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
अहिंसा के आप पुजारी
छुआछूत का भेद हटाया
महान विभूति चरखा धारी
दया क्षमा प्रेम सिखाया
भारत मां का मान बढ़ाया
नमक आंदोलन जो छेड़ा
सत्याग्रह को आगे बढ़ाया
खादी वस्त्र काम में लाओ
स्वदेशी को सब अपनाओ
कम खर्चे में उत्पादन बढ़ाओ
देश प्रगति पथ पर लाओ
समरसता का भाव जगाना
एकता का पाठ पढ़ाना
उत्तम अनुपम रहे संस्कार
सादा जीवन उच्च विचार
भाईचारा खूब जगाया
देश प्रेम का भाव बढ़ाया
राम नाम की जपकर माला
साबरमती का संत कहाया
ऊंच-नीच का भेद मिटाकर
वतन परस्ती जोत जलाकर
अन्याय विरुद्ध आवाज उठाओ
महान गुणी हम धन्य हुये पाकर
एक लाठी धोती धरकर
जन-मन में जोश भर कर
लड़ी लड़ाई आजादी की
अहिंसा का पाठ पढ़ कर
आप देश की शान रहे हैं
निर्बल का उत्थान रहे हैं
कर्मशील बन आगे बढ़ना
आदर्श पुरुष मिसाल रहे हैं
आपको नमन वंदन करते हैं
हे राष्ट्रपिता अभिनंदन करते हैं
सत्याग्रह के सत्य पुजारी
वंदन करती जनता शादी
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान
क्या है आजादी का मतलब
2020 का हिन्दुस्तान.....
देखो देखो ज़रा आंखें खोल कर,
ये है मेरा,नए साल का जहां...
किसी शैतान बिगड़े बच्चे सा लगता है,
आन बान शान जान इसकी पहले सी कहां?
ये है मेरा 2020 का हिन्दुस्तान....
कभी कोरोना महामारी से जुझता भारत,
तो कभी टिक टोक बेन से रूठना भारत!
चाईनीज उत्पादों का विरोध करता भारत,
तो कभी बाढ़,भूख,रक्त की कमी दे लड़ता भारत!
ये है मेरा 2020 का हिन्दुस्तान...
कोई एसी कार में घूमता दिखता,
तो कोई रिश्वत लिए कोडियो में बिकता,
कभी मजदूर बेचारा हजारो मील पैदल चलता,
तो कभी पायलट गहलोत संग भिड़ता!
ये है मेरा 2020 का हिन्दुस्तान...
बिजली का बिल तो नहीं हुआ माफ़,
ईएमआई माफ़ के जासे का हुआ पर्दा फाश!
पानी भरा गड्ढों में, सड़के यूहीं टूट गई
एक मौत तो पेड़ गिरने से मेरे मोहल्ले में ही हो गई!
ये है मेरा 2020 का हिन्दु…
[10:11, 02/10/2020] Kiran Khatri: विषय - प्रेम का जीवन में महत्व
विधा - कविता
मेरे जीवन में प्रेम का मतलब?
सवाल बहुत उलझा सा है...
महत्व तब दर्शाया जाता है,
जब पहले निभाया जाता है!
मेरे जीवन में प्रेम का मतलब,
शायद एक अदृश्य ताकत है,
जो साथ है हमेशा,दिखती नहीं,
जो रहती सदा है,पर जताती नहीं!
मेरे जीवन में प्रेम का मतलब,
एक छाया है,जो हमेशा साथ है!
बारिश और छाते का जैसे प्यार है,
गुरुद्वारे में जैसे मांगी गई कोई आस है!
मेरे जीवन में प्रेम का महत्व?
अंधेरे में शायद उजाला है,
चिंता में इक संतुष्टी है....
आसमान में जैसे पक्षी है...
नीले गगन में जैसे बिजली है!
मेरे जीवन में प्रेम का महत्व?
शब्दों में बयां हो सकता नहीं,
कविता में लिखा जा सकता नहीं...
क्युकी महसूस हुआ है यह सदा,
पर प्रेम मुझे कभी हुआ नहीं..!
पर प्रेम मुझ से कभी हुआ नहीं..!
पर प्रेम किसी ने मुझे किया नहीं..!
किरन खत्री,
उदयपुर
शास्त्री जी
शास्त्री जी
शास्त्री जी तुम्हें नमन है
शीश झुकाता ये गगन है
सत्य से जुड़े विचार थे
दृढ़ शक्ति के तुम दीवार थे
वक्त से हार नहीं मानी
सुंदर भारत के आधार थे
बचपन गरीबी में बीता
स्व- विश्वास कभी न रीता
आई पथ में कई अर्चने
हर युद्ध साहस से जीता
ईमानदारी तुम्हारी पूंजी थी
सच्चाई तुम्हारी ऊँची थी
डिगने नहीं दिया ईमान को
सफलता तुम्हारी कुंजी थी
जय जवान-किसान का नारा दिया
सबको सहारा दिया
जान फूंकी जनमानस में
माँ भारती को किनारा दिया
विजय का डंका बजाया
साड़ी दुनियां को चौंकाया
भरम में न रहे दुश्मन
शक्ति से अपने समझाया
छोटा कद सोच बड़ी थी
हर ओर मुसीबत खड़ी थी
देश के बने जननायक
विजय के लिए सेना लड़ी थी
बीच डगर में छोड़ गए
हमारी राहें मोड़ गए
गम में डूब गया भारत
सपने सारे तोड़ गए
श्याम मठपाल, उदयपुर
महात्मा गांधी का जिनवाणी प्रेम
महात्मा गांधी का जिनवाणी प्रेम
डॉ अनेकान्त कुमार जैन , जैन दर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
मुंबई में आयोजित एक जैन कॉन्फ्रेंस में महात्मा गांधी ने एक व्याख्यान प्रस्तुत किया था, उसमें उन्होंने कहा कि
मेरे लिए तो मुक्ति का दरवाजा अहिंसा धर्म का पलना है । मुझ पर जैन भाइयों की इस कदर कृपा दृष्टि है कि मुझ को उनकी लेना देनी है। भारतवर्ष में एक सगे भाई के समान भाई बंदी के साथ रहने का दावा जैन ही कर सकते हैं।
मेरे परम मित्र डॉक्टर प्राणजीवन जैन है जिनके चरित्र का मुझको सम्मान है । रायचंद भाई मेरे मित्र थे और शहर मुंबई में मेरे रहने का जो स्थान है वह भी एक देवाशंकर जैन भाई का है । सफर के मध्य मुझे बहुत से जैन भाइयों से अक्सर वास्ता पड़ा है और बहुत से उस समय मुझसे पूछते हैं कि क्या आप जैन है? इस प्रश्न के उत्तर में मैं यदि नहीं कहूं तो उनको दुख अनुभव करते देखता हूं इसका मतलब इसके सिवा और कुछ नहीं कि यदि में जैन होता तो ठीक इससे उनका प्रेम मेरी ओर होता ऐसा मैं ख्याल करता हूं क्योंकि जिस बात को वह मानते हैं उस पर मैं अमल करता हूं ।.........
मैं वकील हूं और मैंने जैन शास्त्रों का किसी कदर अभ्यास भी किया है और श्रद्धा भी है।
जब माणिकलाल जेठाभाई ने अहमदाबाद में एक सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किया तो उसका उद्घाटन महात्मा गांधी जी ने किया उस समय उन्होंने एक मार्मिक भाषण भी दिया था।
इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि गुजरात में जैन धर्म की पुस्तकों के अनेक भंडार हैं परंतु वह वणिकों के घर हो रहे हैं ,वह उन ग्रंथों को सुंदर रेशमी वस्त्रों में लपेट कर रखे हुए हैं ,ग्रंथों की यह दशा देखकर मेरा हृदय आहत हो रोता है ।
पुस्तकालय में जैन धर्म के उपलब्ध जैन ग्रंथ एकत्र हो इतना ही क्यों जब आज किसी भी जैनी को ठीक यह पता नहीं है कि कौन कौन से जैन ग्रंथ विशेष हैं ? तब भला कहिए कि वर्तमान में जैनी अयोग्य हैं या नहीं ? प्रोफेसर हीरालाल जी की योजना जो प्रगट हो चुकी है इस कलंक को मिटाने का ही उपाय बताती है । क्या जैन श्रीमान उस को सफल बनाएंगे ?
यह समाचार उन दिनों के समाचार पत्रों में छपे थे । श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान माला में डॉ अमित जैन (चाणक्य वार्ता ) द्वारा 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया , उस समय उन्होंने अखबार की कटिंग सहित इन तथ्यों को उजागर किया था और मैंने अपनी डायरी में उस समय जो नोट्स बनाये थे उसके कुछ अंश यहां प्रस्तुत किये हैं ।
आज आवश्यकता है कि गांधी जी के ऊपर जैन धर्म के प्रभाव का गहन अनुसंधान हो और उसे प्रामाणिक रूप से सभी के समक्ष प्रस्तुत किया जाय ।
Featured Post
महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न
उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular
-
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज की दीक्षा शताब्दी वर्ष पर विशेष चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज पर तिर्यंचोंकृत...
-
स्मित रेखा औ संधि पत्र 'आंसू से भीगे आंचल पर/ मन का सब कुछ रखना होगा/ तुझको अपनी स्मित रेखा से/ यह संधि पत्र लिखना होगा ' कामायनी ...
-
* नैतिक मूल्यों का बढ़ता अवमूल्यन* *डॉ ममता जैन पुणे* ईश्वर द्वारा रची गई सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है मानव क्योंकि मानव एक बौद्धिक व ...
-
जैन संतों की चर्या से प्रभावित होकर आज मिसेज यूनिवर्स 2019 सविता जितेंद्र कुम्भार निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीर सागर महाराज जी ससंघके चरणों म...
-
जैन अल्पसंख्यकों का हिंदी साहित्य में योगदान डॉ संध्या सिलावट भारत एक हिन्दू बहुल राष्ट्र है। इसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 199...