आज आदमी बना स्वार्थी ,
अपने में ही खोया रहता ।
खुदगर्जी की चादर ओढ़े,
दिन में भी सोया रहता।।
तोड़े सारे रिश्ते नाते ,
अंहकार में मगरूर हुआ।
पास न कोई फटके अपने,
दौलत मद में चूर हुआ।।
पास पडौ़स में क्या घटित है,
इसका जरा भी भान नहीं।
अज़नवी सा जीवन जिये,
मानवता का ज्ञान नहीं।।
कालचक्र ने पासा पलटा ,
विपदाओं ने डाले डेरे।
असहाय हो मुँह ताकते ,
पास न कोई आये तेरे।।
जब संकट मानव पर आये,
याद करे रिस्तों को मन में।
अहसास तभी हो पाता है,
मधु जरुरी है जीवन में।।
पदम प्रवीण
जयपुर
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