अपनी मिट्टी को छोड़ कर
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छोटे छोटे हाथ जिस पर
लकीरें भी पूरी नहीं बनी
उनसे सिक्के जोड़कर
बचपने में बड़ा हो गया
जवानी दे दी प्राइवेट नौकरी को
जरूरी था जरूरतों से मिलना
इसलिए अपनी मिट्टी को छोड़ गया।
प्यार की भाजी पर
जरूरतों का अचार भारी पड़ गया
वह गरीब था यारों
रोटी का तंबू गाड़ कर
औकात की चादर में
अपनी मिट्टी को याद कर
सिकुड़ कर सो गया।
पैसों की लाचारी पर
रिश्तो की कुर्बानी देखी
नियत का साफ ईमानदार
था दौलत के लिए
प्यार से मुंह मोड़ गया
पीठ और पेट के बीच दूरी रहे
इसलिए अपनी मिट्टी को छोड़ गया।
गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर
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