बहारों की मंजिल

 

सुधा की शादी के कुछ समय पश्चात ही पति विनय का एक्सीडेंट हो गया और वह भरे हुए संसार में अकेली रह गई। ससुराल में उसकी पहचान एक अशुभ  के रूप में बनकर रह गई जिसकी वजह से पति की अकाल मृत्यु हो गई थी ।  वह ससुराल से अपने पीहर आ गई और छोटी सी नौकरी करके अपना जीवन बिताने लगी।  उसकी उम्र को देखकर अक्सर लोग उसे कहते कि उसको दूसरा  विवाह कर लेना चाहिए लेकिन सुधा कुछ नहीं बोलती और मन मन मे ये सोच कर रह जाती कि कभी तो उसे फिर बहारों की मंजिल मिलेगी । । कभी  तो कोई ना कोई  मेरे जीवन में आएगा । जब आना होगा आ जाएगा य। ये सोच उसने कभी इस नजर से कोई प्रयास नही किया और ये फैसला ईश्वर पर छोड़ दिया क्योंकि उसे विश्वास था कि वो जो  करेगा acha ही करेगा।   इसी तरह तरह से काफी समय बीत गया और एक दिन सुधा के जीवन में उसकी सहेली नीलम के जरिए एक पुरुष का प्रवेश हुआ। शीघ्र ही दोनों बहुत करीब आ गए । उसने सुधा के सामने विवाह प्रस्ताव रखा।सुधा भी अब तक उसे पसन्द करने लगी थी। दोनों ने विवाह का निश्चय किया ।  सुधा ने अंततः बहारों की मंजिल को प्राप्त कर ही  लिया ।

 

          शबनम भारतीय