मेरी पहचान है कविता
रघुराज सिंह कर्मयोगी
जब तक भीड़ में छिपा रहा था।
स्व को तब तक जान रहा था।
वरदान मिला वीणा पाणी से।
शब्द फूट गए मेरी वाणी से।
अब मेरी पहचान है कविता।
ज्ञान और सम्मान है कविता।
चारों धाम तीर्थ हैं कविता।
गंगा का पावन जल कविता।
वेदों का हर शब्द है कविता।
ईश्वर का चरणामृत कविता।
शंकर का डमरू है कविता।
रविंद्र नाथ गीतांजलि कविता।
जय शंकर कामायनी कविता।
संपूर्ण ज्ञान का मर्म है कविता।
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