मुक्तक

 

 

 सुना है नया चुनाव आया है।

 प्रजातंत्र में तूफान आया है।

 रैली के पर सुर्खाब लगे हैं ।

 वायदोंका संसार आया है ।

 

 

सफेद कपड़ो की मांग बढ़ी है।

 गांधी टोपी सिर चढ़ी है ।

आसमान कदमों पर होता था।

 अब तले जमीन खिसकी पड़ी है।

 

 गली गली बंदरवार सजे हैं।

 ढोल नगाड़े जोरो बजे हैं ।

लगे हैं कोई त्यौहार आया है।

 जनता के देखो बहुत मजे हैं।

 

 नेता जी से मिलने जब जाते।

 पसीने से सरोबार हो जाते ।

अब यहां ऊंट पहाड़ के नीचे हैं।

 हाथ जोड़े जन-जन को लुभाते।।

 

 

विकास का सपना दिखाते हैं।

 विकास पीछे खुद भाग जाते हैं।

 अबकी जो झूठों  की बहार है।

 कुर्सी दौड़ कौन जीत पाते हैं ।

 

 

चंद्र किरण शर्मा,

 भाटापारा।