प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है
















 
















 










































प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है

 

जीवन भर सपनों में खोया,

देख बुढ़ापा अंत में रोया।

चढ़ा जो सूरज ढलता है,

सन्त सदा ,यही कहता है।

बस! प्रेम सदा,ज़िंदा रहता है।।

 

जीवन भर की पाप कमाई,

अंत समय न  काम आयी।

साथ नहीं कुछ चलता है,

सन्त सदा यही कहता है।

बस! प्रेम सदा,ज़िन्दा रहता है।।

 

जीवन धारा को मोड़ दो,

राग-द्वेष को तुम छोड़ दो।

क्यों ग़फ़लत में  रहता है?

सन्त सदा,यही कहता है।

बस!प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।।

 

नफ़रत को दिल से निकाल,

वक़्त कम है, वृति सम्भाल।

क्यों दुःख-सुख  सहता है?

सन्त  सदा यही कहता है।

बस ! प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।।

 

टूट जाते हैं,सुंदर सपनें,

छूट जाते हैं,प्यारे अपने।

जड़-चेतन सब मरता है,

सन्त सदा यही कहता है।

बस!प्रेम सदा ज़िन्दा रहता है।।

                         तारा "प्रीत"

                       जोधपुर (राज०)


 

 



 



 













 











 

 








 

 







 







 




 





 




 



 



 


 


 


















 

 





 



 





 


 







 



 





 


 


 


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