आदमी स्तंभ सा कर्तव्यों के मिलान खांचो में पूरी ना हुई जरूरतें रखी बाहर की धूप अंदर की आग में इच्छाओं को पिघला लिया पूरी की उसने जिम्मेदारियां परिवार को टेका रहा आखिर तक खड़ा रहा आदमी स्तंभ सा मिट्टी से लीपे निर्माण के आधार में रिसाव पर पत्थर की खप्पचियां रखी हवा के थपेड़ों परेशानियों में मरम्मत कर हौसला बना लिया ढलवा छतो को भी संभाला बच्चों के लिए छाया बना पानी में तूफान में खड़ा रहा आदमी स्तंभ सा ऐठदार घुमावो में पानी पीती दरारो में इंतजाम की गठरी पहले से रखी भीगता खुद सिकुड़ता थामने को हर परिस्थिति में बनाता विश्वास जिम्मेदारियों को एहसास कहा और उठाता रहा गुजर के लिए परिवार के बसर के लिए है आदमी स्तंभ सा उदयपुर
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