आओ मिलकर दीवाली पर मान बढा़एं माटी का

आओ मिलकर दीवाली पर मान बढा़एं माटी का


छोड़ के सारे फैशन आओ दीप जलाएं माटी का

जननी है यह माटी अपनी, कर्ज चुकाएं माटी का

छोड़ के सारे फैशन आओ दीप जलाएं माटी का

 

इसकी कीमत कहीं है ज्यादा , फैशन वालों के आगे

बांह पसारे सदा खड़ी यह, अपने लालों के आगे

बोझ है सहती, आह न करती, और शान से कट जाती

अपने बच्चों की खुशियों और निवालों के आगे

त्याग, धैर्य और कितना बलिदान गिनाएं माटी का

छोड़ के सारे फैशन आओ दीप जलाएं माटी का

 

छोड़ के आधुनिकता को , उस परिवार की तो सोचो

रोजी का जो सदियों से है, उस आधार की तो सोचो

साल-महीने उम्मीदों से, दीप बनाया है उसने

भूल के एक पल दुनिया को, उस कुम्हार की तो सोचो

दीप खरीदें उससे और, अधिकार दिलाएं माटी का

छोड़ के सारे फैशन आओ दीप जलाएं माटी का

 

विक्रम कुमार

मनोरा, वैशाली

बिहार

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