दीपावली 

 

हर परत इस जिन्दगी की है खुशी से बावली ।

नित नये छेड़े तराने कहती "शुभ दीपावली"।।

एक दीपक जगमगाता हर्ष और उल्लास का ।

वो प्रतीक हमेशा सुख-सौंदर्य और विलास का ।।

तारामय अम्बर सजा और कृष्ण-पक्ष की शाम है ।

लक्ष्मी-पूजन पर्व जिसका अमावस्या नाम है ।।

धन-धान्य देवी को करते नित निरंतर हम नमन ।

आनंदमय यह दिवस सबके ही लिये हो एक चमन ।।

प्यार की गंगा दिलों में एकता की हो लड़ी ।

रोशनी हर रूह में छाये जैसें चमके फुलझड़ी ।।

स्नेह के झरने के निर्मल जल से कर लें आचमन ।

फिर इसी के साथ कर लें नई दिशा की ओर गमन ।।

इस तरह ढलने से क़िस्मत भी बने सरताज है ।

शुभकामना के पुष्प अर्पित कर रहा "पुखराज" है ।

छा रहीं खुशियाँ बिखेरें अन्धकारी सांवली ।

नित नये छेड़े तराने कहती "शुभ दीपावली" ।

हर परत इस जिन्दगी की है खुशी से बावली ।

नित नये छेड़े तराने कहती "शुभ दीपावली"।।

(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)

 

 बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज")

       कोटा (राजस्थान)