नहीं होंगे कभी जुदा हम

 

नहीं होंगे कभी जुदा हम

शर्तिया फर्मुला बताते हैं हम

 

रब ने दिल दिया,

दिमाग़ दिया और

दिया ज़ज़्बा

दर्द हम सुबहा-शाम

खुद इज़ाद करते हैं

 

इत्तफ़ाकन हादसा

गर कोई हो जाता है

कभी ग़लतफ़हमी का

दिल शिकार हो जाता है

 

कभी नादानी में

गुनाह कर जाता है

कभी गुमनाम राहों में

लड़खड़ा के चोट खाता है

 

कभी जानबूझ के,

तबाह वज़ूद हो जाता है

कभी गुमनाम राहों में

लड़खड़ा के चोट खाता है

 

पहले अपनों को

गले लगाना सीखो

उनके ज़ख्म को प्यार की,

मरहम से सहलाना सीखो

पुराने खोये रिस्तों को

दिल से निभाना सीखो

 

यह रिस्ता खुदगर्ज़ी नहीं,

आइन है इंसानी खून का

ज़िम्मेवारी से क़ायनात

की यही सांझेदारी है

 

अपनों के अश्कों की सेज पे,

दूजे की ज़िन्दगी,

क्या सँवार पाओगे?

अपनों को ठुकरा के,

औरों को ख़ाक,

अपना अहबाब बन पाओगे

 

अपना बनाना

नहीं उतना मुश्किल

अपना बना के

निभाना बेहद मुश्किल

 

किसी को अपना बना,

ग़र बसर की है

किसी को अपनों से जुदा कर,

गरचे सोहबत की है

 

त़ाज़िंदगी रिस्ता निभाना पड़ेगा

नहीं तो क़ुदरत के कहर से

मिट्टी में मिल जाना पड़ेगा

 

नहीं होंगे कभी जुदा हम

मोहब्बत में पीते हैं गम

आँसुओं को पोछने से

अलविदा कर जाता है गम

 

खुशियाँ बाँटते रहें हरदम

बुझ जाये विरह की अगन

कहता है यहीं कवि का मन

 

नहीं होंगे कभी जुदा हम

शर्तिया फर्मुला बताते हैं हम

 

डॉ. कवि कुमार निर्मल