श्राद्ध






श्राद्ध

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"हैलो हेलो" काफ़ी देर से फ़ोन पर घंटी बजी जा रही ।चन्द्रदेव  भड़भड़ा कर उठ बैठा और फ़ोन उठा लिया,"हां हैलो कौन"फ़ोन पर आवाज़ आई,"हां मैं नंदू के बापू मैं रानो बोल रही हूं, तुम कब तक गांव पहुंच रहे हो नंदू के बापू ,"अरे का बात है"। पितर-पक्छ सुरु हो गवा है,आने में देरी मत करियो सप्तमी का बाबू जी का सिराध है,कैसे भी पहुचं जावो।" चन्द्र देव ने कहा," कोसिस करत हूं, गाड़ियों में बहुत भीड़-भाड़ चल रही है,क्योकि कोरोना की वजह से बहुत दिनन बाद रेल-गाड़ियां चली हैं,अगर मेरे बिन काम चला लेवे तो देख ले,क्योंकि काम बड़ी मुस्किल से मिला है बहुत हर्जा होवेगा,मालिक पैसे भी काट देगा।पहले ही कोरोना ने कमर तोड़ कर रख दी है,और रेलगाड़ी में जगह भी न मिलेगी"।अरे कैसी बात करत हो नंदू के बाबू तुम्हार बिन पुन्य न जावेगा,उनकी आत्मा को.......। अच्छा-अच्छा फोन रख देखत हूं। कहकर फ़ोन रख दिया। ट्रेन की की भीड़-भाड़ की कल्पना करके सोचने लगा गांव कैसे पहुँचा जाए,जाना तो पड़ेगा गाड़ी में ऊपर की बिरथ पे बैठ कर या नीचे फर्श पर,बापू के सिराध जो है।

 

शशि सिंह आगरा।


 

 



 



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