# ये कैसी मज़बूरी #
इंसान को बंदी बना दे, है ये कैसी मज़बूरी,
भावनाओं को आग दिखा दे, है ये कैसी मज़बूरी,
आते -जाते जो हमको बस औकात से रूबरू करादे,
दिल के पावन पटल पर जो आघात का खंजर घुसा दे,
ये कैसी मज़बूरी जो जीवन को मौत से बदतर बनादे,
ये कैसी ज़ंज़ीरे जो हर पल फ़र्ज़ की बेड़िया पहनादे,
धन -दौलत का भेदभाव हमेशा हमें है दिखाते,
खुद को जो ऊँचा मानकर औरों को नीचा दिखाते,
मन सोचे है बार -बार ये कैसी है मज़बूरी,
मन मंथन करे बार -बार ये कैसी है दूरी,
मजबूर इंसान की व्यथा एक मज़बूर ही केवल जाने ,
ये कैसी मज़बूरी जो गरीब का दर्द बेवजह माने,
दीपाली मित्तल
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