चिन्तन के आयाम'...एक श्रेष्ठतम कृति
आदरणीय डॉ. मुक्ता जी की नवीन श्रेष्ठतम कृति ' चिन्तन के आयाम' आलेख-संग्रह के विषय में मुझे कुछ शब्द लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, अपितु कृति की रचनाकार के सम्मुख मेरी लेखनी बहुत ही बौनी है। फिर भी उनके लिए माँ शारदे की कृपा से कुछ लिखने का साहस जुटा पा रहा हूँ। वैसे तो लेखिका डॉ. मुक्ता ने पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर स्वयं का विस्तृत रूप से विवरण प्रस्तुत किया है, उनके बारे में मेरा लिखना इतना आवश्यक नहीं। फिर भी उनके विषय में संक्षिप्त रूप में कुछ लिखना मेरा भी दायित्व बनता है। डॉ. मुक्ता एक महान्, यशस्वी, सुविख्यात कवयित्री व साहित्यकार के रूप में साहित्य जगत् में प्रतिष्ठित हैं, जो समस्त हिन्दी साहित्य जगत् का गर्व व गौरव हैं तथा उन्हें विशिष्ट हिन्दी सेवाओं के निमित्त भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी जी द्वारा सन् 2016 में सम्मानित भी किया जा चुका है। आप महिला महाविद्यालय की पूर्व-प्राचार्य व हरियाणा साहित्य अकादमी व हरियाणा ग्रंथ अकादमी की निदेशक रही हैं और केंद्रीय साहित्य अकादमी की सदस्या के रूप में भी आपने दायित्व को बखूबी वहन किया है। आपकी विविध विधाओं में तेतीस कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। आपकी रचनाओं पर कई विद्यार्थी एम• फिल• कर चुके हैं तथा एक छात्रा को पीएच• डी• की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है। दो अन्य विद्यार्थी पीएच• डी• कर रहे हैं। अनेक साहित्यिक पुस्तकों में भी आपके आलेख, कहानी व कविताएं प्रकाशित हो चुके हैं तथा आपका साहित्य-सृजन निरन्तर जारी है । 'चिन्तन के आयाम' आपका सद्य:प्रकाशित आलेख-संग्रह है। इस पुस्तक के जितने भी स्तम्भ चुने गये हैं, वे वास्तव में प्रशंसनीय व सराहनीय हैं। सभी स्तम्भ अपने भीतर विशेष-वैचित्र्य संजोए हैं, जिसका आकलन आप पुस्तक पढ़ने के पश्चात् स्वयं ही कर पाएंगे।डॉ• मुक्ता ने अपने नवीनतम आलेख-संग्रह 'चिन्तन के आयाम' में समाज में घटित अनेक तथ्यों को छुआ है; अनगिनत विषमताओं, विकृतियों, विसंगतियों, कु-नीतियों, कुरीतियों आदि का विशद् विवेचन किया है। विभिन्न घटनाएं--तन्दूर काण्ड, तेज़ाब काण्ड, दहेज व घरेलू हिंसा की भीषण घटनाएं, नशे की लत के कारण लूटपाट, फ़िरौती व अपहरण कर बच्चियों के साथ बलात्कार के जानलेवा किस्से सामान्य हैं। एक-तरफ़ा प्यार, 'लिव-इन', 'मी-टू' और 'ऑनर किलिंग' में अंजाम दी गई हृदय-विदारक हत्याओं से कौन अवगत नहीं है...यह तो घर-घर की कहानी है। डॉ. मुक्ता ने अपनी कृति 'चिंतन के आयाम' में अनेक सामाजिक विसंगतियों की ओर ध्यान केन्द्रित किया है। लेखिका ने लगभग हर विषय को छूने का अदम्य साहस किया है, जिससे यह पुस्तक किसी भी विषय से अनछुई नहीं रही है, जिस पर प्रश्न उठाकर, लेखिका ने समाज को जाग्रत करने का हर सम्भव प्रयास किया है? उन्होंने हर विषय का चिंतन-मनन ही नहीं, नीर-क्षीर विवेकी दृष्टि से मन्थन भी किया है तथा समाज की जड़ों को खोखला करने वाली मान्यताओं की ओर केवल हमारा ध्यान ही आकृष्ट नहीं किया, उन्हें समूल नष्ट करने का संदेश भी दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि लेखिका का ध्यान विशेष रूप से नारी-उत्पीड़न पर ही रहा हैं। नारी-वेदना को बुद्धिमत्ता के साथ उद्घृत किया है। नारी-शोषण, घरेलू-हिंसा, मासूम बच्चों से भीख मंगवाना व नादान बच्चियों को देह-व्यापार में झोंकना व उनकी तस्करी करना धनोपार्जन का मुख्य उपादान बन गया है। दहेज-उत्पीड़न एवं दहेज के लालची दानवों द्वारा नव-विवाहिता की कभी गैस से जला-कर, कभी बिजली का करंट लगाकर, कभी फांसी लगा कर, कभी गोली व चाकू मार कर हो रही हत्याएं हृदय को उद्वेलित करती हैं, कचोटती हैं। अक्सर वारिस को जन्म न दे पाने के नाम पर तिरस्कृत किया जाना व पुन:विवाह की अवधारणा सामान्य-सी बात है। कन्या भ्रूण-हत्या समाज का कोढ़ है, जो ला-इलाज है। मिथ्या अहंतुष्टि के लिए 'ऑनर किलिंग' जैसा घिनौना अपराध करना जन-मानस में कूट-कूट कर भरा है। अबोध-निर्दोष बच्चियों का शील-भंग व बलात्कार कर हत्या करना वासना के भूखे भेड़ियों का शौक है। यदि पीड़िता शिकायत दर्ज कराने, किसी भी पुलिस-स्टेशन व अदालत में जाती है, तो उससे अधिवक्ताओं द्वारा बार-बार विभिन्न प्रकार के अश्लील प्रश्न पूछना, केवल चिन्तन के नहीं, चिंता के विषय ही तो हैं। इस कारण वह इस भ्रष्ट व कुत्सित समाज में कुलटा, कुलक्षिणी, पापिनी, कुल-नाशिनी आदि संबोधनों से अलंकृत की जाती है, जो विडम्बना तो है ही, परंतु बहुत दुर्भाग्यपूर्ण भी है । हाँ! यहाँ मैं इतना कहना उचित समझता हूँ कि इस कृति में पुरुष का उल्लेख बहुत ही कम है... है भी तो एक नारी के उपेक्षक व शोषक के स्वरूप में। ग़ौरतलब है कि नारी-शोषण व नारी-उत्पीड़न में पुरुष की ही नहीं, नारी की भी अहम् भूमिका होती है। परन्तु इस सन्दर्भ में नारी की कम और पुरुष का अधिक... । कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी बात का निर्णय अधिकतम/ न्यूनतम के हिसाब से किया जाता है, यहाँ भी यही समझना होगा। परन्तु हर परिस्थिति में पीड़ित तो नारी ही होती है, शारीरिक यातना व मानसिक प्रताड़ना भी उसे ही झेलनी पड़ती है।इसके अतिरिक्त लेखिका अपने गृह राज्य की महिमा का गुणगान करना भी नहीं भूली हैं। उन्होंने समाज में हो रहे अनाचार, भ्रष्टाचार, अत्याचार व गरीबी की मार झेल रहे लोगों की ओर ही ध्यान आकृष्ट ही नहीं किया है बल्कि शासन-प्रशासन में हो रही त्रुटियों को भी उजागर करने का प्रयास किया है। ज्ञातव्य है कि लेखिका ने राष्ट्रीय व साहित्यिक मंचों पर हो रही ठेकेदारी, चुटकलेबाज़ी, निज-यशोगान व स्वार्थपरता के कारण पुरस्कारों के आदान-प्रदान व धन के लेनदेन पर भी अपनी चिंता व्यक्त की है। साहित्यिक मंचों पर कुछ मठाधीशों के आधिपत्य से नवांकुर, उदीयमान कवियों/ लेखकों के भविष्य पर भी चिंता जताई है। कश्मीर समस्या के समाधान पर भी प्रसन्नता व्यक्त की गयी है। देश में आरक्षण के नाम पर हो रही भ्रष्ट-राजनीति व गलत नीतियों का बखान करना भी वे भूली नहीं हैं तथा देश के प्रति कर्त्तव्य-विमुख लोगों को भी चेताने का प्रयास भी उन्होंने बखूबी किया है।उपरोक्त कृति को 'चिन्तन के आयाम' कहना कदाचित् अनुचित नहीं होगा, क्योंकि यह अत्यन्त -उत्तम कृति है, जो भावनाओं को झकझोरती है तथा श्रेय-प्रेय व औचित्य-अनौचित्य के बारे में सोचने पर विवश करती है। मैं समझता हूँ कि समाज में घटित कोई भी ऐसा घटनाक्रम नहीं है, जिसकी ओर लेखिका ने इंगित नहीं किया है। यह पुस्तक विलक्षण है, सबसे भिन्न है तथा इसमें पाठक को लगभग हर विषय पर, पढ़ने-समझने व चिंतन-मनन करने को सामग्री प्राप्त होगी। सो! मेरा मंतव्य यह है कि 'चिन्तन के आयाम' कृति सभी सुधीजनों को अवश्य पढ़नी चाहिए तथा इस स्तुत्य कृति के लिए लेखिका डॉ. मुक्ता जी को हार्दिक बधाई व साधुवाद।
शुभापेक्षी,
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक, पूर्व-सम्पादक
परशुराम एक्सप्रेस, फ़ास्ट इंडिया
दिल्लीचिन्तन के आयाम'...एक श्रेष्ठतम कृति
आदरणीय डॉ. मुक्ता जी की नवीन श्रेष्ठतम कृति ' चिन्तन के आयाम' आलेख-संग्रह के विषय में मुझे कुछ शब्द लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, अपितु कृति की रचनाकार के सम्मुख मेरी लेखनी बहुत ही बौनी है। फिर भी उनके लिए माँ शारदे की कृपा से कुछ लिखने का साहस जुटा पा रहा हूँ। वैसे तो लेखिका डॉ. मुक्ता ने पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर स्वयं का विस्तृत रूप से विवरण प्रस्तुत किया है, उनके बारे में मेरा लिखना इतना आवश्यक नहीं। फिर भी उनके विषय में संक्षिप्त रूप में कुछ लिखना मेरा भी दायित्व बनता है। डॉ. मुक्ता एक महान्, यशस्वी, सुविख्यात कवयित्री व साहित्यकार के रूप में साहित्य जगत् में प्रतिष्ठित हैं, जो समस्त हिन्दी साहित्य जगत् का गर्व व गौरव हैं तथा उन्हें विशिष्ट हिन्दी सेवाओं के निमित्त भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी जी द्वारा सन् 2016 में सम्मानित भी किया जा चुका है। आप महिला महाविद्यालय की पूर्व-प्राचार्य व हरियाणा साहित्य अकादमी व हरियाणा ग्रंथ अकादमी की निदेशक रही हैं और केंद्रीय साहित्य अकादमी की सदस्या के रूप में भी आपने दायित्व को बखूबी वहन किया है। आपकी विविध विधाओं में तेतीस कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। आपकी रचनाओं पर कई विद्यार्थी एम• फिल• कर चुके हैं तथा एक छात्रा को पीएच• डी• की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है। दो अन्य विद्यार्थी पीएच• डी• कर रहे हैं। अनेक साहित्यिक पुस्तकों में भी आपके आलेख, कहानी व कविताएं प्रकाशित हो चुके हैं तथा आपका साहित्य-सृजन निरन्तर जारी है । 'चिन्तन के आयाम' आपका सद्य:प्रकाशित आलेख-संग्रह है। इस पुस्तक के जितने भी स्तम्भ चुने गये हैं, वे वास्तव में प्रशंसनीय व सराहनीय हैं। सभी स्तम्भ अपने भीतर विशेष-वैचित्र्य संजोए हैं, जिसका आकलन आप पुस्तक पढ़ने के पश्चात् स्वयं ही कर पाएंगे।डॉ• मुक्ता ने अपने नवीनतम आलेख-संग्रह 'चिन्तन के आयाम' में समाज में घटित अनेक तथ्यों को छुआ है; अनगिनत विषमताओं, विकृतियों, विसंगतियों, कु-नीतियों, कुरीतियों आदि का विशद् विवेचन किया है। विभिन्न घटनाएं--तन्दूर काण्ड, तेज़ाब काण्ड, दहेज व घरेलू हिंसा की भीषण घटनाएं, नशे की लत के कारण लूटपाट, फ़िरौती व अपहरण कर बच्चियों के साथ बलात्कार के जानलेवा किस्से सामान्य हैं। एक-तरफ़ा प्यार, 'लिव-इन', 'मी-टू' और 'ऑनर किलिंग' में अंजाम दी गई हृदय-विदारक हत्याओं से कौन अवगत नहीं है...यह तो घर-घर की कहानी है। डॉ. मुक्ता ने अपनी कृति 'चिंतन के आयाम' में अनेक सामाजिक विसंगतियों की ओर ध्यान केन्द्रित किया है। लेखिका ने लगभग हर विषय को छूने का अदम्य साहस किया है, जिससे यह पुस्तक किसी भी विषय से अनछुई नहीं रही है, जिस पर प्रश्न उठाकर, लेखिका ने समाज को जाग्रत करने का हर सम्भव प्रयास किया है? उन्होंने हर विषय का चिंतन-मनन ही नहीं, नीर-क्षीर विवेकी दृष्टि से मन्थन भी किया है तथा समाज की जड़ों को खोखला करने वाली मान्यताओं की ओर केवल हमारा ध्यान ही आकृष्ट नहीं किया, उन्हें समूल नष्ट करने का संदेश भी दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि लेखिका का ध्यान विशेष रूप से नारी-उत्पीड़न पर ही रहा हैं। नारी-वेदना को बुद्धिमत्ता के साथ उद्घृत किया है। नारी-शोषण, घरेलू-हिंसा, मासूम बच्चों से भीख मंगवाना व नादान बच्चियों को देह-व्यापार में झोंकना व उनकी तस्करी करना धनोपार्जन का मुख्य उपादान बन गया है। दहेज-उत्पीड़न एवं दहेज के लालची दानवों द्वारा नव-विवाहिता की कभी गैस से जला-कर, कभी बिजली का करंट लगाकर, कभी फांसी लगा कर, कभी गोली व चाकू मार कर हो रही हत्याएं हृदय को उद्वेलित करती हैं, कचोटती हैं। अक्सर वारिस को जन्म न दे पाने के नाम पर तिरस्कृत किया जाना व पुन:विवाह की अवधारणा सामान्य-सी बात है। कन्या भ्रूण-हत्या समाज का कोढ़ है, जो ला-इलाज है। मिथ्या अहंतुष्टि के लिए 'ऑनर किलिंग' जैसा घिनौना अपराध करना जन-मानस में कूट-कूट कर भरा है। अबोध-निर्दोष बच्चियों का शील-भंग व बलात्कार कर हत्या करना वासना के भूखे भेड़ियों का शौक है। यदि पीड़िता शिकायत दर्ज कराने, किसी भी पुलिस-स्टेशन व अदालत में जाती है, तो उससे अधिवक्ताओं द्वारा बार-बार विभिन्न प्रकार के अश्लील प्रश्न पूछना, केवल चिन्तन के नहीं, चिंता के विषय ही तो हैं। इस कारण वह इस भ्रष्ट व कुत्सित समाज में कुलटा, कुलक्षिणी, पापिनी, कुल-नाशिनी आदि संबोधनों से अलंकृत की जाती है, जो विडम्बना तो है ही, परंतु बहुत दुर्भाग्यपूर्ण भी है । हाँ! यहाँ मैं इतना कहना उचित समझता हूँ कि इस कृति में पुरुष का उल्लेख बहुत ही कम है... है भी तो एक नारी के उपेक्षक व शोषक के स्वरूप में। ग़ौरतलब है कि नारी-शोषण व नारी-उत्पीड़न में पुरुष की ही नहीं, नारी की भी अहम् भूमिका होती है। परन्तु इस सन्दर्भ में नारी की कम और पुरुष का अधिक... । कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी बात का निर्णय अधिकतम/ न्यूनतम के हिसाब से किया जाता है, यहाँ भी यही समझना होगा। परन्तु हर परिस्थिति में पीड़ित तो नारी ही होती है, शारीरिक यातना व मानसिक प्रताड़ना भी उसे ही झेलनी पड़ती है।इसके अतिरिक्त लेखिका अपने गृह राज्य की महिमा का गुणगान करना भी नहीं भूली हैं। उन्होंने समाज में हो रहे अनाचार, भ्रष्टाचार, अत्याचार व गरीबी की मार झेल रहे लोगों की ओर ही ध्यान आकृष्ट ही नहीं किया है बल्कि शासन-प्रशासन में हो रही त्रुटियों को भी उजागर करने का प्रयास किया है। ज्ञातव्य है कि लेखिका ने राष्ट्रीय व साहित्यिक मंचों पर हो रही ठेकेदारी, चुटकलेबाज़ी, निज-यशोगान व स्वार्थपरता के कारण पुरस्कारों के आदान-प्रदान व धन के लेनदेन पर भी अपनी चिंता व्यक्त की है। साहित्यिक मंचों पर कुछ मठाधीशों के आधिपत्य से नवांकुर, उदीयमान कवियों/ लेखकों के भविष्य पर भी चिंता जताई है। कश्मीर समस्या के समाधान पर भी प्रसन्नता व्यक्त की गयी है। देश में आरक्षण के नाम पर हो रही भ्रष्ट-राजनीति व गलत नीतियों का बखान करना भी वे भूली नहीं हैं तथा देश के प्रति कर्त्तव्य-विमुख लोगों को भी चेताने का प्रयास भी उन्होंने बखूबी किया है।उपरोक्त कृति को 'चिन्तन के आयाम' कहना कदाचित् अनुचित नहीं होगा, क्योंकि यह अत्यन्त -उत्तम कृति है, जो भावनाओं को झकझोरती है तथा श्रेय-प्रेय व औचित्य-अनौचित्य के बारे में सोचने पर विवश करती है। मैं समझता हूँ कि समाज में घटित कोई भी ऐसा घटनाक्रम नहीं है, जिसकी ओर लेखिका ने इंगित नहीं किया है। यह पुस्तक विलक्षण है, सबसे भिन्न है तथा इसमें पाठक को लगभग हर विषय पर, पढ़ने-समझने व चिंतन-मनन करने को सामग्री प्राप्त होगी। सो! मेरा मंतव्य यह है कि 'चिन्तन के आयाम' कृति सभी सुधीजनों को अवश्य पढ़नी चाहिए तथा इस स्तुत्य कृति के लिए लेखिका डॉ. मुक्ता जी को हार्दिक बधाई व साधुवाद।
शुभापेक्षी,
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक, पूर्व-सम्पादक
परशुराम एक्सप्रेस, फ़ास्ट इंडिया
दिल्ली