कान्हा



     कान्हा की मुरलिया

     बाजी रे बाजी रे।

     मैं  भागी सारे काम छोड़।

     सास मोहे मारे ननद

     ताना देवे।

     सुध बुध खोई रे।

     ललना पालने में  रोये रे।

    पति दे उलाहना ।

     जंगल  जंगल  डोली  रे।

     इत उत भागुं 

 
    नहीं  पाऊँ घनश्याम  रे।

     घर बार छोड़ी

      पत राखिए गिरधारी रे।

     ये जगत काजल  की कोठरी 

     श्याम तुम्हारे  शरण आई रे।

     कान्हा की बाँसुरी  बाजी रे बाजी रे

         

              डाॅ-राजलक्ष्मी शिवहरे

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