मैं एक नारी हुँ


 प्रेम चाहती हूँ और कुछ नही.....

मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ

              हर मुश्किल से खुद को उबार लेती हूँ

नहीं मिलता वक्त घर गृहस्थी में 

              फिर भी अपने लिए वक्त निकाल लेती हूँ

टूटी होती हूँ अन्दर से कई बार मैं

              पर सबकी खुशी के लिए मुस्कुरा लेती हूँ

गलत ना होके भी ठहराई जाती हूँ गलत

             घर की शांति के लिए मैं चुप्पी साध लेती हूँ

सच्चाई के लिए लड़ती हूँ सदा मैं

              अपनों को जिताने के लिए हार मान लेती हूँ

व्यस्त हैं सब प्यार का इजहार नहीं करते

        पर मैं फिर भी सबके दिल की बात जान लेती हूँ

कहीं नजर ना लग जाये मेरी अपनी ही

          इसलिए पति बच्चों की नजर उतार लेती हूँ

उठती नहीं जिम्मेदारियाँ मुझसे कभी कभी

          पर फिर भी बिन उफ किये सब संभाल लेती हूँ

बहुत थक जाती हूँ कभी कभी 

          पति के कंधें पर सर रख थकन उतार लेती हूँ

नहीं सहा जाता जब दर्द,औंर खुशियाँ

     तब अपनी भावनाओं को कागज पर उतार लेती हूँ

कभी कभी खाली लगता हैं भीतर कुछ

            तब घर के हर कोने में खुद को तलाश लेती हूँ

खुश हूँ मैं कि मैं किसी को कुछ दे सकती हूँ

     जीवनसाथी के संग संग चल सपने संवार लेती हूँ

हाँ मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ

  अपनों की खुशियों के लिए अपना सबकुछ वार देती हूँ।

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