*पुरुषार्थ
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पैरों में है गति तुम्हारे, मन में है विश्वास भरा,
फिर क्यों बैठे सोच में तुम हो, करना है अभी काम बड़ा।
दीन हीन की मदद की खातिर, तुमको आगे आना है
पिछड़े और अनाथ जनों को, तुमको गले लगाना है।
आशा और निराशा के बादल, छंट जायेंगे सारे यार,
तुमको तो औरों के आँसू, पोंछ-पोंछ मुस्काना है।
सुख-दुख का यह चक्र है प्यारे, उनको यह समझाना है
आज नहीं तो कल को मिलेगा, सबको अपना ठिकाना है।
भूख बेबसी और लाचारी, अब तो टिक नहीं पायेंगे
मानव के पुरुषार्थ के आगे, सब छूमंतर हो जायेंगे।
मौलिक रचना
....लीला कृपलानी
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