सावन की मधु रिमझिम में,

सावन की मधु  रिमझिम में,

 मन जब हर्षित हो झूमे गाए,

 ऐसे में फिर क्यों न याद आए,

सखियों संग सावन के झूले ।


बीरबहूटी जब धोरों मे निकले,

 पेड़ पौधे हरिया छतरी ताने,

 ऐसे में फिर क्यों ना  मन चाहे,

 बालपनी सावन के झूले ।


पत्ती पत्ती पर तरुणाई आए,

 उतावली नदियां तट बंधन तोड़े,

 ऐसे में बोराया मन क्यूं न चाहे,

 किशोर वय के सावन के झूले ।


 द्युति मेघा संग लुका छिपी खेले,

 श्याम बदरा गरज गरज डराए ,

 ऐसे में ह्रदय को  क्यों ना  भाए,

जवानी में लगाए सावन के झूले ।


नाले तालाब सर भर- भर जाए ,

काले पर्वत भी हरिया वस्त्र पहने,

 शीतल  जग  फ़िर  क्यों न चाहे ,

साजन संग के सावन के झूले ।


सावन की मधु  रिमझिम में,

 मन जब हर्षित हो झूमे गाए,

 ऐसे में फिर क्यों न याद आए,

सखियों संग सावन के झूले ।


बीरबहूटी जब धोरों मे निकले,

 पेड़ पौधे हरिया छतरी ताने,

 ऐसे में फिर क्यों ना  मन चाहे,

 बालपनी सावन के झूले ।


पत्ती पत्ती पर तरुणाई आए,

 उतावली नदियां तट बंधन तोड़े,

 ऐसे में बोराया मन क्यूं न चाहे,

 किशोर वय के सावन के झूले ।


 द्युति मेघा संग लुका छिपी खेले,

 श्याम बदरा गरज गरज डराए ,

 ऐसे में ह्रदय को  क्यों ना  भाए,

जवानी में लगाए सावन के झूले ।


नाले तालाब सर भर- भर जाए ,

काले पर्वत भी हरिया वस्त्र पहने,

 शीतल  जग  फ़िर  क्यों न चाहे ,

साजन संग के सावन के झूले ।


सावन की मधु  रिमझिम में,

 मन जब हर्षित हो झूमे गाए,

 ऐसे में फिर क्यों न याद आए,

सखियों संग सावन के झूले ।


बीरबहूटी जब धोरों मे निकले,

 पेड़ पौधे हरिया छतरी ताने,

 ऐसे में फिर क्यों ना  मन चाहे,

 बालपनी सावन के झूले ।


पत्ती पत्ती पर तरुणाई आए,

 उतावली नदियां तट बंधन तोड़े,

 ऐसे में बोराया मन क्यूं न चाहे,

 किशोर वय के सावन के झूले ।


 द्युति मेघा संग लुका छिपी खेले,

 श्याम बदरा गरज गरज डराए ,

 ऐसे में ह्रदय को  क्यों ना  भाए,

जवानी में लगाए सावन के झूले ।


नाले तालाब सर भर- भर जाए ,

काले पर्वत भी हरिया वस्त्र पहने,

 शीतल  जग  फ़िर  क्यों न चाहे ,

साजन संग के सावन के झूले ।


 सावन की मधु  रिमझिम में,

 मन जब हर्षित हो झूमे गाए,

 ऐसे में फिर क्यों न याद आए,

सखियों संग सावन के झूले ।


बीरबहूटी जब धोरों मे निकले,

 पेड़ पौधे हरिया छतरी ताने,

 ऐसे में फिर क्यों ना  मन चाहे,

 बालपनी सावन के झूले ।


पत्ती पत्ती पर तरुणाई आए,

 उतावली नदियां तट बंधन तोड़े,

 ऐसे में बोराया मन क्यूं न चाहे,

 किशोर वय के सावन के झूले ।


 द्युति मेघा संग लुका छिपी खेले,

 श्याम बदरा गरज गरज डराए ,

 ऐसे में ह्रदय को  क्यों ना  भाए,

जवानी में लगाए सावन के झूले ।


नाले तालाब सर भर- भर जाए ,

काले पर्वत भी हरिया वस्त्र पहने,

 शीतल  जग  फ़िर  क्यों न चाहे ,

साजन संग के सावन के झूले ।

 शबनम भारतीय, सीकर,राजस्थान

No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular