प्रेम का धागा बांध कलाई
दुखी जनों को नवजीवन दें।
अति दुख से बेहाल खड़े जो
सूनी आँखों से ताक रहे हैं
एक सूत्र सदभाव का बटकर
दुखियारों के कर पर धर दें
उनको अपने गले लगाकर
माथे चंदन टीका कर दें।
आओ!हम सब*नये अर्थ**।
सीमा पर जो डटे हुए हैं
उनको भी तो दुलार चाहिए
अपनी बहिनों से दूर खड़े जो
उनको भी तो प्यार चाहिए
ममता से सराबोर राखी से
उनको भी आप्लावित कर दें।
आओ!हम सब*नये अर्थ से*।
दूर खड़ा वह कृषक खेत में
देखे अपनी सूनी कलाई
जन हित में धान रोपण खातिर
बहना के पास जा ना पाये
हम सब मिल खेतों में जाकर
उसकी कलाई राखी से भर दें।
आओ!हम सब*नये अर्थ से*।
अनगिन कुदरत की छलनायें
छले जा रही हैं मानव को
अवहेलना उसकी भी करके
हमने भी तो लूटा है उसको
राखी एक प्रायश्चित स्वरूप
प्रकृति माँ के चरणों में धर दें।
आओ!हम सब रक्षा पर्व को
नये अर्थ से मुखरित कर दें।
प्रेम का धागा बांध कलाई
दुखी जनों को नवजीवन दें।।
स्वरचित मौलिक रचना
.लीला कृपलानी(जोधपुर)
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