आंगन में उतर आयी है
जैसे बरसों बाद
बचपन की
कोई सहेली घर आयी है
चुप रहने का नहीं
आज तो बातों का दिन है
कुछ बकाया काम
भी निपटाने का भी
आज मन है
बकाया होमवर्क की हमने
पाठशाला लगाई है
हाथ सूनें हैं
पैरों में महावर लगाना है
सफेद बालों को
फिर से काला करना है
अम्मा बाजार से
मेंहदी के कोन लायी है
आज फुर्सत की दोपहरी
आंगन में उतर आयी है
पैरों में फटती विवाई
झुर्रियों को नकारते दर्पण
सुनाती है उम्र की शहनाई
खिड़की से देखती हूँ
गुज़रते हुए फुर्सत का फिर एक दिन
यूँ ही हो जायेगी फिर शाम
कट जायेगा फिर उम्र का यूँ ही एक दिन
भूल जाती हूँ कभी माथे पे सिंदूर लगाना, अम्मा चिल्लाती है फिर ऐसा गज़ब मत करना
सैंकड़ों काम होतें है अम्मा
फुर्सत का दिन तो एक होता है
कैलेंडर बदल बदल कर भी
जाने क्यों मन उदास रहता है
जाने क्यों अम्मा बाऊजी की याद आयी है
आज फुर्सत की दोपहरी
फिर आंगन में उतर आयी है||
शोभा टण्डन... जोधपुर
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