चांद ने कब कहा मेरी धरती पर मत उतरो पर तुमने तो मानव होड़ लगा दी
मुझतक आने के लिए प्रतियोगिता कर ली मुझ तक आकर अपने आप को सफल मान लिया
अपने जीवन का पैमाना मान लिया
आज चांद मानव से कह रहा है
कितनी सफलता से झंडे और गाडोगे
अपनी सफलता पर इतरा रहे हो
फिर क्यों बिलबिला रहे हो
अपनी यह जिद छोड़ो एक ही राह है तुम्हारी और वह है अहिंसा वह हिंसा तो मत करो जिसकी तुम्हें जरूरत नहीं
ध्यान रहे प्रकृति की भी सहन करने की सीमा है
वक्त रहते तुम भी सहन करना सीख लो आवश्यकता अपनी जगह है संचय य की भी सीमा है परिस्थितियां विपरीत हो जाएं तब यह मत कहना क्या हो गया
मैं तो चांद पर जाना चाहता था
मेरा आशिया ही उजड़ गया
यह आग हमने ही लगाई है
हमें ही जलना होगा हम यही बुझाना होगा सुकून पाने के लिए चांद सी शीतलता लाना होगा
रत्नप्रभा जैन
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