नये आकाश चुने.


परिंदों की तरह नये हौंसले लिए,

हमने भी कई नये आकाश चुने.!

देर लगती है मन क्षितिज बड़ा है,

दूरियाँ देख कर विश्वास भी डिगा है.!

नीड़ को कैसे बान्धू अपने बाहुपाश में,

गिद्ध बैठे हैं झपटने की ताक में.!

जो करता है संघर्ष  यहाँ

वही इस दुनियाँ में जीता है

अभिमन्यु का हश्र

महाभारत में हमने देखा है.!

हौसलें ठंडे हुए अब

सच्चाई भी घुटने लगी

बे करारी सी दिल में

क्यों बढ़ने लगी.?

हंसने रोने का अब

वक्त नहीं है,

कुछ कर गुजरने का ही

जज्बा सही है..!

रेत के घरौंदों की तरह

बिखरे हुए,

सपने कुछ मेरे भी यूँ

पराए हुए..!

मुंह फेर के चल दिए हम

अपना छोटा सा चिराग लिए

थोड़ी सी तासीर बची है

अभी__उजालों के लिए.!

परिंदों की तरह नये विश्वास लिए

हमने भी कयी नये आकाश चुने

शोभा टण्डन 

जोधपुर

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