हरियाली तीज


dr shishupal singh

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हम वृक्ष नहीं बचाएंगे,

   तो झूला कहाँ झूलाएंगे।

      फैली है ज्यों  बदहाली ,

         क्या बच पाएगी हरियाली?

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पाषाण भवन भय लाते हैं,

   नित नैसर्गिकता खाते हैं ।

      यहाँ झील सरोवर हैं खाली,

         क्या बच पाएगी हरियाली?

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विकास कथा कहने वाले,

   नित हरते वृक्ष कृत्य काले।

      नव नीड़ों नहीं मिले डाली,

         क्या बच पाएगी हरियाली?

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पंछी कलरव कहाँ करते हैं?

   निर्झर झर-झर कर झरते हैं।

      कहाँ कूके अब कोयल काली?

         क्या बच पाएगी हरियाली?

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हरियाली ही श्वास हमारे  हैं,

   वृक्ष धरा धर्म को धारे हैं ।

      पेड़ों से बचेगी खुशहाली

         क्या बच पाएगी हरियाली?

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फैली है ज्यों  बदहाली ,

   क्या बच पाएगी हरियाली?

      मिलकर हरित बचाएँ हम,

         तब मन में होगी हरियाली।।

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