नयी नवेली दुल्हन बनी रजनी अपने ससुराल से दो महीने पहले अपने मायके रामनगर आयी थी । मायके में पति बिन एक एक दिन की जिन्दगी उसे पहाड़ जैसी लग रही थी ।
वह अपने पति सुनिल पास अपने ससुराल श्रीकृष्णनगर जाना चाह रही थी,लेकिन लाज- शर्म के मारे रजनी अपने माँ,बाप,भाई-भौजाई को अपने दिल की बात नहीं बता रही थी।
इधर अपने गाँव घर में रजनी का पति सुनिल अपनी पत्नी के बिना काफी उदास रहता था। सुनिल एक कलाकार हृदय का नवयुवक था। सुनिल को अपनी नयी नवेली दुल्हन रजनी के बिना तनिक भी मन नहीं लग रहा था,वह ससुराल जाने के लिये छटपटा रहा था लेकिन उसे अपने माता-पिता की तरफ से ससुराल जाने के लिये इजाजत नहीं मिल रही थी।
इधर रजनी अपनी सहेली गहना के द्वारा सुनिल के पास एक चिठ्ठी भिजवाती है। जिसमें लिखा होता है-"पिया हमरा मन नहीं लागत ई अंगनवाँ में,पिया अईया तु जरुर ई फागुनवाँ में।"।
सुनिल रजनी के नाम एक पत्र लिखता है,जिसमें वह अपने दिल की बात लिखता है-"सजनी आइब हम जरुर फागुनवाँ में,हमरा मन नहीं लागत ई अंगनवाँ में।"
साजन का पत्र पाकर रजनी को अपनी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। वह साजन का पत्र लेकर मन हीं मन बुदबुदाती है" आज आयी मेरे साजन की पाती, खुशी से चौड़ी हुयी सजनी की छाती "।वह खुशी के मारे कभी चिडियाँ की तरह चहकने लगती है,फुदकने लगती है,कभी सजती है,कभी संवरती है, हँसती,मुस्कुराती है तो कभी खुद से बातें करती है,मानो आज हीं उसका साजन सुनिल उसे लेने के लिये आया हो।
अरविन्द अकेला
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