आजकल


हर गली में बात तेरी आजकल

दिख रही है घात तेरी आजकल

तुम तो कहते हम रहेंगे साथिया

दरस तेरे हो ना पाते आजकल

हर सुबह आगाज होता प्यार से

मौन क्यों पसरा हुआ है आजकल

बात करना लाजिमी था एकदिन

हाल तक ना पूछते तुम आजकल

खूब हँसना-खेलना था रात-दिन

मौन का व्यवहार है क्यों आजकल

साथ देखे भोर के तारे कभी

और सूरज भी छुपा है आजकल

हम लगे थे  प्राणवायु से सखे

क्यों हुए निर्वात तुमको आजकल

 शलभ तो प्यारे रहे थे हे शिखा

अब बुझा क्यों दीप है ये आजकल

लखन पाल सिंह शलभ

 भरतपुर

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