युवाओं का आदर्श रूप, आजादी का परवाना था ।
जिसके एक इशारे पर , हर युवा जोश दीवाना था ।
जिसकी नस-नस में था जुनून, आजादी का प्रण ठाना था ।
"तुम मुझे खून दो ,मैं आजादी दूंगा" छेड़ा अलमस्त तराना था ।
स्वतन्त्र राष्ट्र का हितचिंतक , जन-मन का था दृढ़ विश्वास ।
हर भारतीय गर्व से कहता था , जिसको "नेताजी सुभाष"।
जिसके गाये तरानों से, आजादी ने ली अंगड़ाई थी ।
जिसने देश के जन-जन में ,स्वातन्त्र्य की अलख जगाई थी ।
'जय हिन्द' बोल कर गरजा था, वह युवा
जोश निर्भीक लाल ।
उसके हर एक इशारे पर, तरुणाई करती थी कदमताल ।
उस तरुणाई की मुखर गूँज, झंकृत करती थी हृदय तार ।
वह गूँज सुनाई देती थी, सरहदों के भी बहुत-बहुत पार ।
जिसने विदेश में जाकर के, आजाद हिंद फौज का गठन किया ।
जिससे घबराकर छल बल से, अंग्रेजों ने उसका दमन किया ।
राजनीति के छल बल से , वह युवा जोश था छला गया ।
आजाद हिंद का सपना ले, वह बलिदानी तो चला गया ।
किंतु स्थापित प्रतिमान आज , आजाद देश में जिंदा हैं ।
'शील' सुभाष हर जन-जन में , आजादी पाकर के जिंदा हैं।
शील चन्द्र जैन 'शील'
ललितपुर, उत्तर-प्रदेश (भारत)
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