न करना ऐसा श्रृंगार,

करना जरूर श्रृंगार , अहिंसक

न करना ऐसा श्रृंगार,

न करना हिंसक श्रृंगार,

न करना फूहड़ता प्रदर्शन,

गर मन ललचाये करने को श्रृंगार,

उसे करना समज़ के जरूर.....

जब पिया का मन कर जाये,

दिल के भावों को रख लेना जरूर,

उनके मन की बातों को रखकर,

साजन के नाम सोलह श्रृंगार कर लेना जरूर...........

इन सोलह श्रृंगारसे तन सोहे,

दिलवरजी का मन मोहे,

खुद के मन को मोहित करे,साथ ऐसा करना श्रृंगार,

सेवा सुख शांति का तारणहार,

उसे करना जरूर.........

चूड़ी बिंदी सोलह श्रृंगार चमके दमके,

उसकी मधुर ख़नक घर में बजती रहे,

प्यारकी चमक दमक से घर का कोना कोना चमके,

उस आभासे तेरे रिश्ते दर्पण बन चमके,

ऐसा श्रृंगार उसे करना जरूर......

जब अस्त व्यस्त होकर,

स्वयंको  भूल घर  काम में लगी रहो,

किन्तु चुपके से सजना से शरारत करना न भूलना,

ये नेह,बचपना,

तपती दुपहरिया में सावन बन जाता.

ये मासूमियत  श्रृंगार........

संस्कारो की जड़ें गहरी,

माँ बाबूजी बच्चों के संग धर्म लहरी,

अहिंसा शाकाहार श्रृंगार,

जीव हिंसा से बचो ऐसे सन्देश दे करना  श्रृंगार जरूर .......

स्वरचित प्रभा जैन इंदौर।

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