ले हम आज ये भागीरथी प्रण..!

कमल सिंह सोलंकी


आज हरियाली अमावस्या.. दो शब्द हरियाली+अमावस.. दोनों का साथ आना तनिक अटपटा सा लगता है.. जीवन में अमावस भी हो और वह भी हरियाली हो बात गले नहीं उतरती.. पर इस बात से भी मैं इनकार नहीं कर सकता अगर इंसान सांसो और समय इन दो चीजों का सही-सही प्रबंधन (उपलब्ध संसाधनों का दक्षता पूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग) करें तो हर इंसानी जीवन का हर दिन हरा-भरा हो सकता है.. अंधेरे (अमावस्या) उनकी जिंदगी से कोसों दूर रहेंगे.. आज की रचना हर कर्मवीर को यही तो संदेश दे रही है..!


सांसों और समय का जिसने भी किया है सही-सही प्रबंधन..!

उसी जन का हुआ है इस जग में सदा सदा ही तो वंदन..!


ज़ुबां और ज़हन को जिस किसी ने भी रखा सदा ही निष्कपट..!

खुशहाली उसका हाथ थाम चली है कब मिलता उसको क्रंदन..!


नज़र सुहानी दिमाग़ हो बर्फानी उसकी होती अलग कहानी..!

नज़र और दिमाग़ ही रार करवाते और यही करवाते अभिनन्दन..!


जीवन में हमेशा सुख ही सुख मिले यह होना बड़ा ही दुर्लभ है..!

दुःख और विपदा ये अतिथि है जो आते हैं बिना निमंत्रण..!


कुछ सांसे कुछ धड़कनें तो हर ढलती शाम चुरा के ले जाती है..!

लाख कोशिशें करले मानव पर हर पल घट रहा है उसका ये धन..!


जो गुज़र गया उसको हम बिसार दें जो बचा है उसको संवार ले..!

सांसों व समय का प्रबंधन करेंगे ले हम आज ये भागीरथी प्रण..!


ज़हन=मन

बर्फानी=ठंडा

रार=विवाद

बिसार=भूलना


रतलाम मध्य प्रदेश

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