डा० ममता जैन
प्रतिपल वंद्य, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी श्रमण- सूर्य आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज की वैदुष्यपूर्ण लेखनी से निःसृत ऐसी सर्वोपयोगी कालजयी कृति है जिसमें श्रद्धेय आ. श्री ने निर्भीकता, तटस्थता एवं सर्तकता से देश में विस्तारित दूषित परम्पराओं विचार धाराओ एवं जीवन शैली को भाषा समिति को पूर्णत: परिपालन करते हुए वस्तु की व्याख्या, द्रव्य के स्वरूप, जीवत्व के लक्षण, मानव जीवन की सार्थकता को निरूपित किया है । वस्तुत्व महाकाव्य का मंगलाचरण "अहो हंसात्मन" से जब प्रारम्भ होता है तब नीर क्षीर विवेक जागृत होता है और उपसंहार वस्तु का 'वस्तुत्व' स्पष्ट कर देता है। किंतु यह मात्र आगम के सिद्धांतों का प्रतिपादन ही नहीं करता वरन् इसमें राष्ट्र के विकास के प्रति सम्मान भाव भी दृष्टिगत होता है।...
राष्ट्र की पहचान केवल राजनीति से नहीं उसकी संस्कृति से होती है ।भारत आध्यात्मिक मूल्यों का आदर्श राष्ट्र है,जैन जैनेनर ग्रंथों के अनुसार प्रथम तीर्थंकर नाभिपुत्र श्री ऋषभदेव के चक्रवर्ती भरत के नाम पर इसका नाम भारत पड़ा । यह महान पुरुषों की जन्म भूमि है, ऐसे भरते ईश्वर के लिए ही आचार्य श्री कहते हैं-
विश्वविख्यात भारत महान
यही भरत के भारत का चमत्कार
......
यहाँ हैं चौबीस भगवान
तीर्थ भूमि....भारत देश प्रधान
राष्ट्र संत आचार्य श्री को राष्ट्र के गौरव का, यहाँ के स्वर्णिम अतीत का भान है -
राष्ट्र जहाँ की भूमि को
माता कहा जाता है
जब भारत माता ही है
विश्व के देश है संतान
इसलिए भारतीय सबसे रखते हैं
भाई भाई का सम्मान...
ऐसी मां का गौरव ऐसे राष्ट्र की अखण्डला
स्थायी रह सकती है केवल तब जब यहाँ के निवासी आध्यात्मिक मूल्यों को अंतरंग में प्रतिष्ठापित करें..
अखण्ड भारत की
अखण्डता
अध्यात्म ही रख पाएगा.
आचार्य श्री ऐसे गौरवमयी राष्ट्र के भविष्य को उजाला देने का प्रयास भी किया है - आदि प्रभो आदित्य के
षट्कर्मों का ध्यान करो..
कृषि करो या ऋषि बनो
भारत राष्ट्र की विशिष्ट पहचान है
बीगा में भले ही विभिन्न धर्मों का राज हो परन्तु उनका समन्वित स्वर धर्मनिरेपक्षता है - "वस्तुत्व में आचार्य श्री का पंकतना सुन्दर शब्द संयोजन एवं भान प्रवणता है
धर्म निरपेक्ष प्रजातन्त्र का विशाल देश....
अनेक भाषा संप्रदाय एकता के
सूत्र में अखंड भारत
भारत महान भाव है
भाषा बोलियों से नाना समुदायों के साथ एक राष्ट्र आश्चर्य चकित
भारत की शक्ति अहिंसा ,करुणा है।भारत ने सदैव विश्व हित की कामना की है, यहाँ मनुष्यता की शक्ति का धर्म शाश्वत है । यही दिव्य दर्शन इन पंक्तियों में उद्घोषित हो रहा है
भारत बने विश्व राष्ट्र
यही भावना भाना
अहिंसा परम ब्रह्म का नारा लगाना
प्रेम, वात्सल्य ,मैत्री भाव से
सबको गले लगायो
विश्वमैत्री, सत्वेषु मैत्री का पाठ समझाओ
इसीलिए पूजा श्री की अभिलाषा है पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक भारत मैं अहिंसा और शाकाहार भाव का विस्तार हो..
बही दुग्धसम धवल धारा वसुधा पर
कैसे प्राणी बंध की रक्तिम धारा उस पर फलादि वनस्पतियों का जलपान करो
प्राणीवध से प्राप्त मांस का त्याग करो ||
आत्मा कन्दन करने लगती है लेखनी की भी
आमिष भोजियों ने मूक पशुओं को भी जठराग्नि में झोंक दिया..
मृत हो मारे जाए दोनों ही जीवों के कलेवर अनंत जीवों का पिण्ड नहीं है मानव का भोजन
शुद्धाहार... शाकाहार
गुरुदेव भारत की उस प्रणम्य परम्परा की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हैं जहाँ उगते सूर्य के साथ अतिथि के आगमन की प्रतीक्षा होती थी,
" भारत भूमि पर अतिथि संविभाग व्रत पाला जाता..
भारत की इस पुण्य व दिव्य धरा पर आतंकवाद के खूनी पंजे अपना रूप दिखाने लगे जिसे देखकर मुनि-मन भी चिंतित है, आचार्य श्री को इनका
समाधान अहिंसा में ही दृष्टिगत होता है.. अहिंसा का राज्य अविराम
लेगी भारत भूमि
आतंकवाद से
शान्ति की श्वास
निष्कर्षत: सम्पूर्ण कृति में आचार्य श्री का राष्ट्र-प्रेम छन छन कर आ रहा है. और आचार्य श्री हम सब को भी यही संदेश देते हैं कि देश सर्वोपरि है देश की अखंडता सर्वोपरि है,इसकी सुरक्षा हमारा राष्ट्रीय दायित्व है
देश राष्ट्र जाति के नाम पर
कर सको तो करो सम्यक् संघटन
जिससे हो सिद्धत्व का उद्घाटन
वस्तुत्व का अस्तित्व एवं प्रभुत्व कालजयी है,युग युग तक राष्ट्र ऐसे युगान्तरकारी संत के चरण- युगल में तक नत शीष रहेगा ।
E-801 Daffodils Magampatta cily Pune 411013
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