प्रेम मय सदन

 साँची-सुरभि

 प्रेम मय सदन

सदन सुगंध युक्त, सुख देता ।

दुखद दुरूह कष्ट, हर लेता ।

सब निज पीर भूल, सुख पाते ।

मधुर सुगीत गान, सब गाते ।।

सुमन भरे पराग, मन भाते ।

मनुज सुबुद्धि धार, हरषाते ।

कपट न द्वेष भाव, मन जागे ।

कर शुचि प्रेम गान, बढ़ आगे ।।

सुदृढ अटूट बंध, जब होता ।

सहज दुरूह काम, तब होता ।

सुखद निवास गेह, शुभकारी ।

कट हर कष्ट जाय, अति भारी ।।

मनुज कुसंग त्याग, सजते हैं ।

प्रभुवर को सदैव, भजते हैं ।

प्रभु पद कंज ध्यान, कर प्राणी ।

मधुर सुभाषितान, कर वाणी ।।

विनय दयानिधान, सुन लीजे ।

अतुल समृद्धि कीर्ति, प्रभु दीजे ।

अमृत समान भाव, सब पाएँ ।

मधुरिम प्रेम गीत, सब गाएँ ।।


         इन्द्राणी साहू"साँची"

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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