सृजन का दीप जले दिन रात
ध्वंस का हो जाए अवसान,
जगे आस्था का नवल प्रभात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।।
लोक में भर दें हम आलोक,
रहे ना किसी हृदय में शोक।
काल के सह लें क्रूर प्रहार,
रहे जग मानवता का ओक।।
चलें ना मानव कभी कुचाल,
सुलगते हों ना विविध सवाल।
मिलें प्रश्नों के उत्तर नेक ,
व्यथित ना करें कभी भूचाल।।
शांति हो भू पर चारों ओर,
चतुर्दिक् दृश्य रहें अवदात।
बदल दें सबके ही दिनमान,
सृजन के दीप जलें दिन- रात।।1
लेखनी रचे सुहाने गीत ,
बनें सब मानवता के मीत।
रहे जग मध्य परस्पर प्रीत,
सदा ही रहे सत्य की जीत ।।
मिटें मन के सब अंतर्द्वन्द,
सुरभि दें सदा भाव- मकरंद ।
रहें जग-जीव सभी सानंद,
गूंजते रहें सृष्टि में छंद।।
रहें निर्मल भू-जल- आकाश ,
शांति की हो पावन बरसात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।2।
सृजन के चढ़ नूतन सोपान,
तनें भावों के उच्च वितान।
मिटें आपस के सभी विभेद,
सफल हों सारे नीति- विधान।।
उड़ें चहुं दिशि सद्भाव-विहंग,
सुनें सब हर क्षण सुखद प्रसंग।
रहें जीवन के सुंदर ढंग,
सरस हो वसुधा की उत्संग।।
प्रेम का पायें सब सान्निध्य,
रहें ना घात और प्रतिघात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन रात।3।
राष्ट्री-हित में हों एक्य- विचार,
प्रगति से देश करे विस्तार।
वीथियां उर की हों गुलज़ार ,
करे मर्यादा जहां बिहार।।
प्राणियों के चित हों विस्तीर्ण,
हृदय हों सरल स्वार्थ से हीन।
बहे संस्कृति की मधुर सुगंध,
खिलें उपवन में सुमन नवीन।।
वाड्.मय- वैभव हो उद्दीप्त,
बहे समरसता का मधु वात ।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।4
सृजन की राहें विविध अनंत,
श्रेष्ठ है सदा सृजन का यज्ञ।
मिले द्वन्द्वों की समुचित काट,
बने सम्बल ईश्वर सर्वज्ञ ।।
रंगें शब्दों से उज्ज्वल पृष्ठ,
सृजन के मिलें सुखद परिणाम।
रचें शब्दों से सुंदर सेतु,
गढ़ें जगहित पथ ललित ललाम।।
सृष्टि के मंगल का ले ध्येय,
चेतना की दें शुभ सौग़ात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।5
भावनाओं का शुभ अभिकल्प
रसायन शब्दों का सिरमौर।
दक्षताओं के विकसें वक्ष,
*साधना-तरु में आये बौर।।
्रणा की गूंजें मंजीर*,
रहे ना किसी ह्रदय में पीर।
चले ना कहीं कपट- शमशीर,
खिंचें ना द्रोपदियों के चीर।।
उजाला रहे विश्व में व्याप्त,
रहे ना कहीं अंधेरी रात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात ।6
बना लें निज उर को ही दीप,
प्रेम का भरें उसी में तेल।
साधना- ज्योति जले निष्कम्प,
रहे शब्दों का सार्थक मेल।।
कठिन है किंतु सृजन की राह
सुनें हम मानवता की आह।
रखें जनमंगल की ही चाह,
बहे भावों का पुण्य-प्रवाह।।
हृदय-वीणा की गूंजे तान,
बचाएं हिंदी का अहिवात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सजन का दीप जले दिन- रात।7
भाव -निर्झरिणी बहे असीम,
जगें स्वस्तिक सुंदर संकल्प।
झरे शब्दों से अर्थ- पराग ,
बनें मानव- हित के मधुकल्प।।
अक्षरों का है अक्षय- कोष,
श्रेष्ठ मानव मूल्यों का घोष।
काव्य के शिखर छुएं आकाश,
सत्य की साध रहे निर्दोष।।
करें अनुचित का नित प्रतिकार,
प्रेम का अविरल झरे प्रपात।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन-रात।।8
मिटें जीवन के सब अवरोध,
सत्य, शिव, सुंदर का हो बोध।
परस्पर त्यागें मनुज विरोध,
करें मुखरित सर्जक युगबोध।।
"राग हों सरस, सरस लय-तान"
छलकता रहे भाव का नीर
"स्वच्छ हों "जीवन- सर" के तीर"
रहें ना तन- मन कभी अधीर।।
भरे हों 'रस के सिंधु अगाध' ,
"नीति के हों ना शिखर निपात"।
बदल जाएं सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।9।
रहें सस्मित धरती-आकाश,
रहे आपस में नित विश्वास।
बहे हर उर में नव उल्लास,
रहे सबके अधरों पर हास।।
सृजन का रचें नया इतिहास,
गूंजता रहे स्वरों से व्योम।
भावनाओं के रवि" हों सौम्य,
कल्पनाओं के शुचि हों सोम।
शारदे!दो ऐसा वरदान,
लेखनी हो जाये निष्णात।
बदल जायें सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन- रात।10
जगे शब्दों में 'अनहद- नाद',
रहे विलसित उर में आह्लाद।
"वेदना-विष" पी जगे शिवत्व,
बदल जाये जीवन का स्वाद।।
पिपासाएं हों मन की शान्त,
कामनाएं ना हों उद्भ्रान्त।
"मनुज से मनुज न हों आक्रान्त"
स्वप्न नयनों के हों ना क्लान्त
लिखें जीवन में नयी बहार,
झरें ना "जीवन-तरु" के पात।
बदल जायें सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन-रात।11
मिले वीणावादिनि का प्यार,
सजें जीवन के रंग हज़ार।
सिद्धियों के खुल जायें द्वार,
सृजित हो एक नया संसार।।
सृजन में लगे रहें फ़नकार,
साधना की गूंजे झनकार।
"वेद"स्वर-शब्दों के उपहार,
रसिक जन करो इन्हें स्वीकार।।
सरस यह "चिन्तन का नवनीत",
रहेगा रुचिर सभी को ज्ञात।
बदल जायें सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन-रात।12
सृजन के रहें शुद्ध आयाम",
सृजन को करते सभी प्रणाम
सजग हों निर्माणों के मन्त्र,
सृजन से धन्य हुआ हर धाम
सृजन में होती अद्भुत शक्ति
सृजन में लीन साधना-भक्ति।
*सृजन से अमर हुआ है व्यक्ति,
सृजन है ईश्वर में अनुरक्ति।।
सृजन में सौख्य शील सौन्दर्य,
सृजन से उज्ज्वल अरुण- प्रभात।
बदल जायें सबके दिनमान,
सृजन का दीप जले दिन-रात।13
वेदप्रकाश शर्मा "वेद"
नगर भरतपुर राजस्थान