ज़िन्दगी बिताने का क्या है मज़ा,
बिना धूप और छाँव का लिए मज़ा,
धूप रूपी हो सुख यहाँ या छाँव रूपी हो दुख यहाँ,
विचलित ना होना पथ से होकर अधीर यहाँ,
धूप और छाँव तो है भास्कर की महिमा अनूठी,
सुख और दुख तो है जीवन की चमकीली अंगूठी,
मेरे जीवन की बहुत ही खट्टी और मीठी है कहानी,
धूप और छाँव तो है जीवन की आती और जाती सुनामी,
दुख -सुख के बिना तो जीवन की महत्ता है अधूरी,
गम को चखकर ही तो लगती खुशी की महत्ता पूरी,
प्यार का बंधन है जितना मज़बूत होता,
दुख का समुंद्र है उतना कमज़ोर होता,
गर्म और ठन्डे अहसास से होते है ये फूल और कांटे,
कभी आँसू तो कभी फुआर है हँसी की ये न्यारे छींटे,
धूप और छाँव की बगिया में दिखते फूल रंगीले,
कभी हल्के तो कभी भडकीले लगते बहुत ही सजीले,
दीपाली मित्तल
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