राष्ट्रभाषा देश की आन है ,शान है, सम्मान है और अभिमान है । 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान मैं हिंदी को राजभाषा का का सम्मान प्राप्त हुआ ।जो इसके महत्व को देखते हुए उचित ही था ।क्योंकि हमारे देश की 70% से अधिक जनता हिंदी भाषा में ही संवाद करती है ।हिंदी भारत की आत्मा में बसी हुई है जो कि हर प्रदेश में बोली जाती है ।संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में पिरो कर रखने का काम हिंदी भाषा ही कर रही है ।हिंदी में भारतीय पुरातन परंपराओं की अभिव्यक्ति के साथ ही आधुनिक अवधारणाओं को व्यक्त करने की असीम क्षमता है।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का कथन है -"हिंदी राष्ट्रभाषा का प्रचार करना ,मैं राष्ट्रीयता का अंग मानता हूं ।हिंदी राष्ट्रीय एकता की भाषा है ।हिंदी भारत माता के ललाट की बिंदी है"।
विविधता में एकता की अभिव्यक्ति हिंदी में ही है। हिंदी की उत्पत्ति भारतीय संस्कृति की भाषा संस्कृत से हुई है। हिंदी में सभी प्रांतीय भाषाओं के शब्दों मिलते हैं ।यह देवनागरी लिपि में लिखी गई है और यह लिपि वैज्ञानिक लिपि है। एक राष्ट्रभाषा जिन चीजों की मांग करती है वह सब हिंदी भाषा में समाहित है। हिंदी भाषा में प्राचीन काल में पर्याप्त मात्रा में साहित्य की रचना हुई है और वर्तमान काल में भी साहित्य हिंदी भाषा में देश के हर कोने कोने में रचा जा रहा है।
गांधी जी के शब्दों में-" अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा को पूरी करने में लगभग 16 वर्ष लग जाते हैं जबकि वह शिक्षा हिंदी माध्यम से दी जाए तो मुश्किल से 10 वर्ष में शिक्षा पूरी हो जाती है।"
गांधी जी ने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सरल और सुगम हो और जिस भाषा को बोलने वाले लोग अधिक हो।
देश के बाहर दुनिया में भी हिंदी का वही मान और सम्मान है और विदेश की धरती पर भी लोग हिंदी भाषा में संवाद करते हैं। हिंदी देश के भौगोलिक और सांस्कृतिक एकता का ज्वलंत प्रतीक है। राष्ट्रीय मर्यादा के रूप में हिंदी को अपनाना ही राष्ट्रीय धर्म है।
हिंदी है राष्ट्रभाषा हमारे वतन जैसे है प्यारी
अनेकता में एकता का नारा है
गौरवशाली भारत हमारा है
सांस्कृतिक मूल आधार है राष्ट्रभाषा
अक्षण्यु रहे हिंदवासी अभिलाषा
हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए हिंदी भाषा के सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है।
1975 में नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें लगभग सभी देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था इसी को आधार मानकर वर्धा में हिंदी की अंतरराष्ट्रीय विद्यापीठ की स्थापना की गई।भोपाल में हिंदी सम्मेलन आहूत किया गया था उसके गरिमामय उपस्थिति तथा भव्यता अपने आप में एक इतिहास है ।उसी सम्मेलन में मॉरीशस की राजधानी पेटलुई मैं सम्मेलन आयोजित करना निर्धारित किया था ।जिसकी तिथि 18 अगस्त 2018 से 20 अगस्त 2018 तक थी।
अब वह दिन दूर नहीं जब यह सपना साकार होगा जो भारतेंदु जी का यह कथन हमें हिंदी भाषा के विकास की प्रेरणा दे रहा है-
निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल
बिन निजभाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल
डॉ दीपिका राव व्याख्याता
नूतन उच्च माध्यमिक विद्यालय बांसवाड़ा
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