‼️ वर्णी समाधि दिवस ‼️


भाद्रपद कृष्ण दशमी 5 सितम्बर, 1961  पूज्य क्षुल्लक गणेश प्रसाद वर्णी जी का समाधि दिवस है। 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जैन समाज एवं बुंदेलखण्ड क्षेत्र में शिक्षा के प्रचारक-प्रसारक, निर्भीक, दृढ़निश्चयी, कुरीतियों के विरोधी, सामाजिक-सौहार्द के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले महापुरुष थे पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी ! इनकी समग्र जीवनगाथा आज भी जन-जन के लिए प्रेरणा का स्रोत  है ।

वर्णीजी का जन्म सन् 1874 में उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिला अन्तर्गत हंसेरा ग्राम में एक वैश्य परिवार में हुआ। आपकी धर्ममाता चिरोंजाबाई थीं । वे बहुत धर्मात्मा और त्याग की मूर्ति थीं । आपकी जैनधर्म में श्रद्धा का कारण महामन्त्र णमोकार था, क्योंकि णमोकार मन्त्र ने उन्हें बड़ी-बड़ी आपत्तियों से बचाया था तथा आपने पद्मपुराण ग्रंथ से प्रभावित होकर रात्रि भोजन का त्याग किया । आपने 1947 में जैन श्रावक के उत्कृष्ट व्रत स्वरूप ग्यारह प्रतिमा (क्षुल्लक दीक्षा) धारण की थी! आपने अपने सम्यक् पुरुषार्थ से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन विद्यासम्बन्धी पाठ्यक्रम प्रारम्भ कराया था ।

जबलपुर में हो रही आमसभा में  स्वतंत्रता संग्राम आजादी के पुजारियों की सहायतार्थ आपने अपनी चादर समर्पित की थी । इस चादर से उसी क्षण तीन हजार रुपये की मिली राशि ने सभा को आश्चर्यचकित कर दिया । उक्त राशि देशभक्तों के सहायतार्थ  भेज दी गई ! वर्णी जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से देश में करीब डेढ़ सौ से भी अधिक विद्यालय  कायम हुए और बनारस में संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कीlसैंकड़ों पाठशालाएँ, विद्यालय और महाविद्यालय खुले। ललितपुर के बढ़नी इंटर कॉलेज के छात्र पूरे विश्व में अपना वर्चस्व जता चुके हैं वर्तमान में जितने भी विद्वान् देखे जाते हैं, वह उनके अज्ञान अन्धकार मिटाने के प्रयास का सुफल है ।आपने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई,और संदेश दिया कि जैन धर्म प्रत्येक मानव का है। 

विनोबा भावे ने वर्णीजी को अपना अग्रज माना और उनके चरण स्पर्श किए और अनेक बार उनका सान्निध्य प्राप्त किया । आपका व्यक्तित्व भारत के शैक्षिक एवं सामाजिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाने योग्य है । वर्णीजी ने भाद्रपद कृष्ण दशमी 5 सितम्बर, 1961 को ईसरी में सल्लेखनापूर्वक देह का त्याग किया । 

ऐसे महामना के पावन चरणों में विनम्र प्रणाम !

||निर्मल  शास्त्री 

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