सुख-दुख सारी मन की माया

सुख-दुख सारी मन की माया

ना कोई कुछ ले जाएगा,

ना कोई कुछ संग में लाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।

जैसा हो प्रारब्ध उसी विधि,

   रहना सबको पड़ता।

      एक पुष्प चढ़ता पूजा में,

       इक अर्थी पर चढ़ता ।।

सुख-दुख के चक्रों में मानव,

   नित प्रति उलझा रहता।

     अवसादों के सर में डूबा,

         चिंताओं में बहता।।

 जो सोचें अनुभूति वही हो,

 मन रहता हरदम भरमाया।

 खाली हाथ सभी को जाना,

 सुख-दुख सारी मन की माया।।1

वैभव तन को सुख दे सकते,

   मन की गति है न्यारी।

      मन को यदि संतुष्टि नहीं तो,

        बढ़ जाए लाचारी।।

मन यदि है कंगाल तो जीवन,

   में आनंद नहीं है ।

    गंध-हीन ज्यों सुमन व्यर्थ,

       जिसमें मकरंद नहीं है ।।

वैसा ही फल पाए मानव,

जिसने जैसा पेड़ लगाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।2

निज जीवन में सदा प्रगति के,

   देखें सब ही सपने।

     वही मिलेगा जिसके जैसे ,

        यत्न रहेंगे अपने।।

 क़ुदरत ने जीवन सौंपा है,

     शुभ सौग़ात मिली है।

       सदा हौसलों से जीवन की,

         कलिका मृदुल खिली है।।

कर्मनिष्ठ के जीवन में ही,

सुख, सौरभ बनकर के छाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।3

समय एक सा कब रहता है,

    बदले जैसे छाया ।

     जब हो ग़र्दिश के दिन तो तब, 

      मिले नहीं हमसाया ।।

मन मसोस रह जाना पड़ता,

    कोई पेश चले ना ।

      बुरे दिनों में कभी चैन की,

         शीतल ठौर मिले ना।।

जो समझा पाया, इस मन को,

उसने चैन हृदय में पाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।4

लाभ- हानि का गणित लगा सब,

   पड़े रहें चक्कर में।

      स्वारथ में सब फंसे हुए हैं,

         शांति कौन के घर में ।।

केवल संग्रह करें रात- दिन, 

   किंतु सभी नश्वर है ।

      करना कूच पड़ेगा सबको,

         कौन रहा स्थिर है।।

राजा- रंक रहा ना कोई,

गया वही जो भू पर आया ।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।5

मन का वेग प्रबल होता है,

    सदा दौड़ता रहता।

       कभी रंज में कभी खुशी में ,

          रोता- हंसता रहता।।

 मन माने तो सुख ही सुख है,

    मन माने तो पीड़ा।

     घुन की भांति खोखला करता,

        नित चिंता का कीड़ा ।।

जिसने सभी प्रपंच त्याग दिए,

उसने ही सच्चा पथ पाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुखसारी मन की माया।।6

बजता है संगीत सृष्टि में,

 सभी कहां सुनते हैं ।

 अपनी ही उलझन में निशि- दिन,

   सिर अपना धुनते हैं ।।

खग कलरव करते हैं सुमधुर,

   नदियां कल-कल करती।

     सरगम के स्वर वायु, गगन में,

       मीठे पल- पल भरती।।

जो करले तादात्म्य प्रकृति से,

वह सर्वत्र यहां हरसाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।7

घोर निराशा की रातों का,

   होता कठिन सवेरा।

     सुख -दुख भोगा करता मानव,

       निज कर्मों का प्रेरा।।

दुःख की रातें भी कट जाती,

   सुख के दिन भी बीतें।

      लेकिन आकांक्षाओं के घट ,

         नहीं किसी के रीतें।।

जीता वही ,कभी ना जिसने-

 बाधाओं को शीश झुकाया। 

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।8

नदी- नाव संजोग सदृश ही,

   रहना है इस जग में।

      सुख-दुख के आएंगे मेले,

        इस जीवन के मग में।।

 सत्कर्मों के बीज लगाएं,

    नित मीठे फल पाएं।

      याद करें ये दुनिया वाले,

         जब दुनिया से जाएं 

जिसने सीख लिया विष पीना,

उसने ही अमृत को पाया।

खाली हाथ सभी को जाना,

सुख-दुख सारी मन की माया।।9


 वेद प्रकाश शर्मा "वेद"

नगर भरतपुर राजस्थान


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