आनंद- छंद क्यों रूठ गए,
सौहार्द- रंग क्यों धो डाला।
ईर्ष्या-छल,वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।।
बुझ गये दृगों के दीप सजग,
चेतन का अलसा कर सोई।
लुट गई भावना सरस- सरल,
डरकर कोमल कलियां रोई।।
गिर गयी चमन पर बिजली सी,
आतंक- ग्रीष्म झुलसाता है।
मन तृषित,कथित है व्यक्ति-शक्ति,
अलगाव-अनल तड़पाता है।।
इस चंचल मन को सबने ही,
स्वार्थों में घना भिगो डाला।
ईर्ष्या-छल,वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।1।।
उपवन से ख़ुशबू रूठ गई,
झर रहीं आज असमय कलियां।
सूना सपनों का गांव हुआ,
गुलज़ार नहीं मन की गलियां।।
हैं प्रेम -सूत्र टूटे- टूटे,
सौभाग्य लगें रूठे- रूठे ।
हो गया खोखला अपनापन,
संबंध हुए झूठे- झूठे।।
पश्चिम की हवा चली ऐसी,
सद्गुण- हीरों को खो डाला।
ईर्ष्या- छल, वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।।2।
यह जीवन घोर रणांगण है ,
संघर्ष यहां है पग-पग पर।
हम को सचेत रहना होगा,
रहबर न मिलेंगे हर पथ पर ।।
संशय के धागों में किसने,
मन- मुक्ता आज पिरो डाला।
इर्ष्या-छल,वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।।3
वटवृक्ष न अब छाया देते,
सबको माया भरमाती है।
जो दिग्गज थे वे डोल गए,
स्वारथ -सरिता इठलाती है।।
टूटन- विचलन का दौर बढ़ा,
बढ़ रही घुटन अब जीवन में।
हो गए संकुचित सीमित सब,
सौहार्द्र रहें कैसे मन में।।
था नीति-सिन्धु, पावन- उज्ज्वल,
उसको भी आज बिगो डाला।
ईर्ष्या- छल,वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।।4
मन-विहग थके,नय-शिखर झुके,
उन्नतियों के रथ रुके- रुके।
अरमान दिलों के फुंके- फुंके,
लग रहे हौसले चुके-चुके।।
ख़्वाबों के यान उड़ें कैसे,
चल रहीं आंधियां धूल भरी।
विश्वास हो गया आवारा,
राहें लगतीं हैं शूल भरी।।
हिम्मत ले "वेद"बढ़ो राही,
अमृत का प्राप्त करो प्याला।
ईर्ष्या-छल,वैर-घृणा को अब,
किसने हृदयों में बो डाला।।5
वेद प्रकाश शर्मा "वेद"
नगर भरतपुर राजस्थान
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